हनुमान चालीसा के लेखक का श्रेय तुलसीदास को दिया जाता है, जो एक कवि-संत थे, जो 16 वीं शताब्दी सीई में रहते थे। उन्होंने भजन के अंतिम श्लोक में अपने नाम का उल्लेख किया है। हनुमान चालीसा के 39वें श्लोक में कहा गया है कि जो कोई भी हनुमान जी की भक्ति के साथ इसका जप करेगा, उस पर हनुमान की कृपा होगी। दुनिया भर के हिंदुओं में, यह एक बहुत लोकप्रिय मान्यता है कि चालीसा का जाप गंभीर समस्याओं में हनुमान के दिव्य हस्तक्षेप का आह्वान करता है।
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमारबल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥
महाबीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥
लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥६॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥९॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥
राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥
आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक ते काँपै
भूत पिशाच निकट नहि आवै महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥
नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ॥१६॥
तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै
अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥
और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥१८॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई
जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
इतिहास
एक बार अकबर ने गोस्वामी जी को अपने दरबार में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ। तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्री राम सिर्फ अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुनते ही अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को कारागार में कैद करवा दिया।
कारावास में गोस्वामी जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी। कहते हैं जैसे ही हनुमान चालीसा लिखने का कार्य पूर्ण हुआ वैसे ही पूरी फतेहपुर सीकरी को बन्दरों ने घेरकर उस पर धावा बोल लिया। अकबर की फौज भी बन्दरों का आतंक रोकने में असफल रही। तब अकबर ने किसी मन्त्री की सलाह को मानकर तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया। कहते हैं जैसे ही तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त किया गया उसी समय बन्दर सारा इलाका छोड़कर चले गये।