तुम कभी न भर पाओगे

*☘ तुम कभी न भर पाओगे l ☘*

एक साधु ने एक सम्राट के द्वार पर दस्तक दी । सुबह का वक़्त था और सम्राट बगीचे में घूमने निकला था । संयोग की बात सामने ही सम्राट मिल गया । *साधु ने अपना पात्र उसके सामने कर दिया सम्राट ने कहा क्या चाहते हो ??*
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साधु ने कहा कुछ भी दे दो *“शर्त एक हैं”* मेरा पात्र पूरा भर जाएं । में थक गया हूँ, यह पात्र भरता ही नहीं । *सम्राट हंसने लगा और कहा* तुम पागल मालुम होते हो । पागल न होते तो, साधु ही क्यों होते, *यह छोटा सा पात्र भरता नहीं ?*… फिर सम्राट ने अपने मंत्री से कहा लाओ स्वर्ण-अशर्फियों से भर दो, इस साधु का मुंह सदा के लिए बंद कर दो । *साधु ने कहा में फिर याद दिला दू की भरने की कोशिश अगर आप करते हैं तो यह शर्त है की जब तक भरेगा नहीं पात्र में हटूंगा नहीं ।*
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*सम्राट ने कहा तू घबरा मत पागल भर देंगे ।* सोने से भर देंगे, हीरे जवाहरात से भर देंगे । *लेकिन जल्द ही सम्राट को अपनी भूल समझ में आ गई अशर्फियां डाली गई और खो गई । हीरे डालें गयें और खो गयें ।* लेकिन सम्राट भी जिद्दी था और फिर साधु से हार माने यह भी तो जंचता न था । सारी राजधानी में खबर पहुंच गई हजारों लोग इकट्ठे हो गए ।

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सम्राट अपना खजाना उलीचता गया । उसने कहा आज दांव पर लग जाना हैं सब डूबा दूंगा मगर उसका पात्र भरूंगा । शाम हो गई । सूरज ढलने लगा । सम्राट के कभी खाली न होने वाले खजाने खाली हो गए लेकिन पात्र नहीं भरा सो नहीं भरा । *वह गिर पड़ा साधु के चरणों में और कहा मुझे माफ़ कर दो । मेरी अकड़ मिटा दी अच्छा किया ।* में तो सोचता था यह अक्षत खजाना है, लेकिन यह तेरे छोटे से पात्र को भी न भर पाया । *बस अब एक ही प्रार्थना है में तो हार गया मुझे क्षमा कर दो ।* मेने व्यर्थ ही तुझे आश्वासन दिया था भरने का।
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*मग़र जाने से पहले एक छोटी सी बात मुझे बताते जाओ ।* दिन भर यही प्रश्न मेरे मन में उठेगा । *यह पात्र क्या है, किस जादू से बनाया है ।*
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साधु हंसने लगा उसने कहा किसी जादू से नहीं *‘इसे आदमी के ह्रदय से बनाया गया है । न आदमी का ह्रदय भरता है न यह पात्र भरता है ।’*
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*इस जिंदगी में कोई और चीज तुम्हे छका न सकेगी। तुम्हारा पात्रा खाली का खाली रहेगा। कितना ही धन डालो इसमें खो जाएगा । कितना ही पद डालो इसमें खो जायेगा, पात्र खाली का खाली ही रहेगा। तुम भरोगे नहीं। भरता तो आदमी तो केवल परमात्मा से हैं। क्योंकि अनंत है हमारी प्यास, अनन्त है हमारा परमात्मा तो अनंत को अनंत ही भर सकेगा।*

*उस अनंत को, असीम को जीते जी जानना – जो हमारे ही अन्दर है – बहुत ही आवशयक है!*
*यह तभी सम्भव है जब हम समय के सद्गुरु से वह आत्मबोध प्राप्त करें – जिससे हमारे ही ह्रदय स्थित असीम से हमारा सम्पर्क बन सके!*

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