जीवन में संतुलन
एक कालेज का छात्र था जिसका नाम था – रवि। वह हमेशा बहुत चुपचाप सा रहता था। किसी से ज्यादा बात नहीं करता था!
इसलिए उसका कोई दोस्त भी नहीं था। वह हमेशा कुछ परेशान सा रहता था। पर लोग उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे।
एक दिन वह क्लास में पढ़ रहा था। उसे गुमसुम बैठे देख कर अध्यापक महोदय उसके पास आये और क्लास के बाद मिलने को कहा।
क्लास खत्म होते ही रवि अध्यापक महोदय के कमरे में पहुंचा।
रवि मैं देखता हूँ कि तुम अक्सर बड़े गुमसुम और शांत बैठे रहते हो, ना किसी से बात करते हो और ना ही किसी चीज में रूचि दिखाते हो। इसलिए इसका सीधा असर तुम्हारी पढ़ाई में भी साफ नजर आ रहा है! इसका क्या कारण है ?” अध्यापक महोदय ने पूछा।
रवि बोला, मेरा भूतकाल का जीवन बहुत ही खराब रहा है, मेरी जिन्दगी में कुछ बड़ी ही दुखदायी घटनाएं हुई हैं, मैं उन्ही के बारे में सोच कर परेशान रहता हूँ, और किसी चीज में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता हूँ।
अध्यापक महोदय ने ध्यान से रवि की बातें सुनी और मन ही मन उसे फिर से सही रास्ते पर लाने का विचार करके *रविवार को घर पर बुलाया।
रवि निश्चित समय पर अध्यापक महोदय के घर पहुँच गया।
रवि क्या तुम नीबू शरबत पीना पसंद करोगे? अध्यापक ने पूछा।
जी। रवि ने झिझकते हुए कहा।
अध्यापक महोदय ने नीम्बू शरबत बनाते वक्त जानबूझ कर नमक अधिक डाल दिया और चीनी की मात्रा कम ही रखी।
शरबत का एक घूँट पीते ही रवि ने अजीब सा मुंह बना लिया।
अध्यापक महोदय ने पूछा, क्या हुआ, तुम्हे ये पसंद नहीं आया क्या?
जी, वो इसमे नमक थोड़ा अधिक पड़ गया है…. रवि अपनी बात कह ही रहा था कि अध्यापक महोदय ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा, ओफ़-ओ, कोई बात नहीं मैं इसे फेंक देता हूँ, अब ये किसी काम का नहीं रहा!
ऐसा कह कर अध्यापक महोदय गिलास उठा ही रहे थे कि रवि ने उन्हें रोकते हुए कहा, नमक थोड़ा सा अधिक हो गया है तो क्या, हम इसमें थोड़ी और चीनी मिला दें तो ये बिलकुल ठीक हो जाएगा।
बिलकुल ठीक, रवि यही तो मैं तुमसे सुनना चाहता था…. अब इस स्थिति की तुम अपनी जिन्दगी से तुलना करो! शरबत में नमक का ज्यादा होना जिन्दगी में हमारे साथ हुए बुरे अनुभव की तरह है!
और अब इस बात को समझो, शरबत का स्वाद ठीक करने के लिए हम उसमे में से नमक नहीं निकाल सकते!
इसी तरह हम अपने साथ हो चुकी दुखद घटनाओं को भी अपने जीवन से अलग नहीं कर सकते पर जिस तरह हम चीनी डाल कर शरबत का स्वाद ठीक कर सकते हैं – उसी तरह पुरानी कड़वाहट और दुखों को मिटाने के लिए जिन्दगी में भी अच्छे अनुभवों की मिठास घोलनी पड़ती है।
यदि तुम अपने अतीत का ही रोना रोते रहोगे तो ना तुम्हारा वर्तमान सही होगा और ना ही भविष्य उज्ज्वल हो पाएगा। अध्यापक महोदय ने अपनी बात पूरी की।
रवि को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था! उसने मन ही मन एक बार फिर अपने जीवन को सही दिशा देने का प्रण लिया।
अक्सर बंद होते हुए दरवाजे की तरफ इतनी देर तक देखते रहते हैं कि हमें खुलते हुए अच्छे दरवाजों की भनक तक नहीं लगती और हमारा जीवन दुखों के सागर में ही डूबा रह जाता है!
जरुरी है कि हम अपनी पुरानी गलतियों या फिर तकलीफ़ों को भूलना सीखें और जिंदगी को फिर से नयी दिशा की और मोड़ें।
इसलिए –
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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