Don’t give anything to the unworthy!

कुपात्र को कुछ मत दो!

एक व्यक्ति एक जंँगल से गुजर रहा था कि उसने झाड़ियों के बीच एक सांँप फंँसा हुआ देखा।

सांँप ने उससे सहायता मांँगी तो उसने एक लकड़ी की सहायता से सांँप को वहांँ से निकाला।

बाहर आते ही सांँप ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं तुम्हें डसूंँगा।

उस व्यक्ति ने कहा कि मैंने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार किया तुम्हें झाड़ियों से निकाला और तुम मेरे साथ गलत करना चाहते हो।

सांँप ने कहा कि हांँ भलाई का जवाब बुराई ही है।

उस आदमी ने कहा कि चलो किसी से फैसला कराते हैं।

चलते चलते एक गाय के पास पहुंँचे और उसको सारी बातें बताकर फैसला पूछा तो उसने कहा कि वाकई भलाई का जवाब बुराई है! क्योंकि जब मैं जवान थी और दूध देती थी तो मेरा मालिक मेरा ख्याल रखता था और चारा पानी समय पर देता था। लेकिन अब मैं बूढ़ी हो गई तो उसने भी ख्याल रखना छोड़ दिया है।

ये सुन कर सांँप ने कहा कि अब तो मैं डसूंँगा!

उस आदमी ने कहा कि एक और फैसला ले लेते हैं।

सांँप मान गया और उन्होंने एक गधे से फैसला करवाया।
गधे ने भी यही कहा कि भलाई का जवाब बुराई है! क्योंकि जब तक मेरे अन्दर दम था मैं अपने मालिक के काम आता रहा जैसे ही मैं बूढ़ा हुआ उसने मुझे भगा दिया।

सांँप उसको डंँसने ही वाला था कि उसने मिन्नत करके कहा कि एक आखरी अवसर और दो!
सांँप के हक़ में दो फैसले हो चुके थे इसलिए वह आखरी फैसला लेने पर मान गया।

अबकी बार वह दोनों एक बन्दर के पास गये और उसे भी सारी बातें बताई और कहा फैसला करो।

बन्दर ने आदमी से कहा कि मुझे उन झाड़ियों के पास ले चलो, सांँप को अन्दर फेंको और फिर मेरे सामने बाहर निकालो तभी उसके बाद ही मैं फैसला करुँगा।

वह तीनों वापस उसी जगह पर गये, उस आदमी ने सांँप को झाड़ियों में फेंक दिया और फिर बाहर निकालने ही लगा था कि बन्दर ने मना कर दिया और कहा कि उसके साथ भलाई मत करो! ये भलाई के काबिल नहीं है!

इसलिए कहा है कि:-
मूर्ख को न समझाइए,
ज्ञान गांँठ का जाए।
जैसे कोयला उजला ना होइए,
चाहे सौ मन साबुन लगाइए।।
इसलिए दूसरों की कमी देखने में अपना समय ना लगाकर अपनी कमियां दूर करने में मगन रहिए!
और नेकी कर कुंए में डाल! वाली बात के अनुरूप किसी से कोई अपेक्षा मत कीजिए!
क्योंकि जब हमारी अपेक्षा की उपेक्षा होगी तो हमको दुःख होगा!

जय सच्चिदानन्द।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻



Leave a Reply