कबीर के दोहे की लिस्ट इस प्रकार है:
- यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।
- “लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार !!”
- “पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!”
- “जो तूं ब्राह्मण , ब्राह्मणी का जाया ! आन बाट काहे नहीं आया !! ”
- “माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया ! जिंदा नाग जब घर मे निकले, ले लाठी धमकाया !!”
- माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
- काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।
- ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग । तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ।
- जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए । यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।
- गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय ।।
- सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज । सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।
- ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
- ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
- बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर । पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
- दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।
- चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये । दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।
- मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार । फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ।
- जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान । मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।
- तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार । सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।
- नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए । मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।
- कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी । एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।
- जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि ॥
- मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि । कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि ॥
- उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं ॥
- कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ । इत के भये न उत के, चाले मूल गंवाइ ॥
- `कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ ॥
- पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार। याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार।।
- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
- निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
- पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात । देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ।
- जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।
- जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान । जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।
- ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग । प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।
- तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय । सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
- प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।
- जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही । ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ।
- साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।
- जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश । जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।
- राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय । जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।
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