rule of law

विधि का विधान

एक समय की बात है- एक बहुत ही ज्ञानी पण्डित था। वह अपने एक बचपन के घनिष्‍ट मित्र से मिलने के लिए किसी दूसरे गाँव जा रहा था- जो कि बचपन से ही गूंगा व एक पैर से अपाहिज था। उसका गांव काफी दूर था और रास्‍ते में कई और छोटे-छोटे गांव भी पढ़ते थे।

पण्डित अपनी धुन में चला जा रहा था कि रास्‍ते में उसे एक आदमी मिल गया, जो दिखने मे बडा ही हष्‍ठ-पुष्‍ठ था!
वह भी पण्डित के साथ ही चलने लगा। पण्डित ने सोचा कि चलो अच्‍छा ही है, साथ-साथ चलने से रास्‍ता जल्‍दी कट जायेगा।

पण्डित ने उस आदमी से उसका नाम पूछा तो उस आदमी ने अपना नाम महाकाल बताया। पण्डित को ये नाम बडा अजीब लगा लेकिन उसने नाम के विषय में और कुछ पूछना उचित नहीं समझा। ‍दोनों धीरे-धीरे चलते रहे तभी रास्‍त में एक गाँव आया।

महाकाल ने पण्डित से कहा- तुम आगे चलो, मुझे इस गाँव मे एक संदेशा देना है। मैं तुमसे आगे मिलता हूँ।

ठीक है कहकर पण्डित अपनी धुन में चलता रहा! तभी एक भैंसे ने एक आदमी को मार दिया और जैसे ही भैंसे ने आदमी को मारा- लगभग तुरन्‍त ही महाकाल वापस पण्डित के पास पहुंच गया।

चलते-चलते दोनों एक दूसरे गांव के बाहर पहुंचे – जहां एक छोटा सा मन्दिर था। ठहरने की व्‍यवस्‍था ठीक लग रही थी और क्‍योंकि पण्डित के मित्र का गांव अभी काफी दूर था! साथ ही रात्रि होने वाली थी! सो पण्डित ने कहा- रात्रि होने वाली है। पूरा दिन चले हैं! थकावट भी बहुत हो चुकी है! इसलिए आज की रात हम इसी मन्दिर में रूक जाते हैं। भूख भी लगी है, सो भोजन भी कर लेते हैं और थोड़ा विश्राम करके सुबह फिर से प्रस्‍थान करेंगे।

महाकाल ने जवाब दिया- ठीक है लेकिन मुझे इस गाँव में किसी को कुछ सामान देना है, सो मैं देकर आता हूॅं! तब तक तुम भोजन कर लो! मैं बाद मे खा लूंगा।

और इतना कहकर वह चला गया! लेकिन उसके जाते ही कुछ देर बाद उस गाँव से धुंआ उठना शुरू हुआ और धीरे-धीरे पूरे गांव में आग लग गई थी। पण्डित को आश्चर्य हुआ। उसने मन ही मन सोचा कि- जहां भी ये महाकाल जाता है, वहां किसी न किसी तरह की हानि क्‍यों हो जाती है? जरूर कुछ गडबड है।

लेकिन उसने महाकाल से रात्रि में इस बात का कोई जिक्र नहीं किया। सुबह दोनों ने फिर से अपने गन्‍तव्‍य की ओर चलना शुरू किया। कुछ देर बाद एक और गाँव आया और महाकाल ने फिर से पण्डित से कहा कि- पण्डित जी, आप आगे चलें। मुझे इस गांव में भी कुछ काम है, सो मैं आपसे आगे मिलता हूँ!*

इतना कहकर महाकाल जाने लगा। लेकिन इस बार पण्डित आगे नहीं बढा बल्कि खडे होकर महाकाल को देखता रहा कि वह कहां जाता है और करता क्‍या है।

तभी लोगों की आवाजें सुनाई देने लगीं कि एक आदमी को सांप ने डस लिया, और उस व्‍यक्ति की मृत्‍यु हो गई। ठीक उसी समय महाकाल फिर से पण्डित के पास पहुंच गया।

लेकिन इस बार पण्डित को सहन न हुआ। उसने महाकाल से पूछ ही लिया कि- तुम जिस गांव में भी जाते हो, वहां कोई न कोई नुकसान हो जाता है!
क्‍या तुम मुझे बता सकते हो कि आखिर ऐसा क्‍याें होता है?

महाकाल ने जवाब दिया, पण्डित जी, आप मुझे बडे ज्ञानी मालुम पडे थे, इसीलिए मैं आपके साथ चलने लगा था क्‍योंकि ज्ञानियाें का संग हमेंशा अच्‍छा होता है। लेकिन क्‍या सचमुच आप अभी तक नहीं समझे कि मैं कौन हूँ?

पण्डित ने कहा, मैं समझ तो चुका हूॅं लेकिन कुछ शंका है! यदि आप ही अपना उपयुक्‍त परिचय दे दें तो मेरे लिए आसानी होगी।

महाकल ने जवाब दिया कि- मैं यमदूत हूॅं और यमराज की आज्ञा से उन लोगों के प्राण हरण करता हूॅं, जिनकी आयु पूर्ण हो चुकी है।

हालांकि पण्डित को पहले से ही इसी बात की शंका थी। फिर भी महाकाल के मुंह से ये बात सुनकर पण्डित थोडा घबरा गया लेकिन फिर हिम्‍मत करके पूछा कि- अगर ऐसी बात है और तुम सचमुच ही यमदूत हो, तो बताओ अगली मृत्‍यु किसकी है?

यमदूत ने जवाब दिया कि- अगली मृत्‍यु तुम्‍हारे उसी मित्र की है, जिसे तुम मिलने जा रहे हो और उसकी मृत्‍यु का कारण भी तुम ही होगे।

ये बात सुनकर पण्डित ठिठक गयाऔर बडे पशोपेश में पड़ गया कि यदि वास्‍तव में वह महाकाल एक यमदूत हुआ तो उसकी बात सही होगी और उसके कारण मेरे बचपन के सबसे घनिष्‍ट मित्र की मृत्‍यु हो जाएगी!

इसलिए बेहतर यही है कि मैं अपने मित्र से मिलने ही न जाऊं! कम से कम मैं तो उसकी मृत्‍यु का कारण नहीं बनूँगा।

तभी महाकाल ने कहा कि- तुम जो सोंच रहे हो! वो मुझे भी पता है लेकिन तुम्‍हारे अपने मित्र से मिलने न जाने के विचार से नियति नहीं बदल जाएगी। तुम्‍हारे मित्र की मृत्‍यु निश्चित है और वह अगले कुछ ही क्षणों में घटित होने वाली है।

महाकाल के मुख से ये बात सुनते ही पण्डित को झटका लगा! क्‍योंकि महाकाल ने उसके मन की बात जान ली थी! जो कि किसी सामान्‍य व्‍यक्ति के लिए तो सम्‍भव ही नहीं थी। फलस्‍वरूप पण्डित को विश्‍वास हो गया कि महाकाल सचमुच यमदूत ही है। इसलिए वह अपने मित्र की मृत्‍यु का कारण न बने इस हेतु वह तुरन्‍त पीछे मुडा और फिर से अपने गांव की तरफ लौटने लगा।

परन्‍तु जैसे ही वह मुड़ा- सामने से उसे उसका मित्र उसी की ओर तेजी से आता हुआ दिखाई दिया जो कि पण्डित को देखकर अत्‍यधिक प्रसन्‍न लग रहा था। अपने मित्र के आने की गति को देख पण्डित को ऐसा लगा जैसे कि उसका मित्र काफी समय से उसके पीछे-पीछे ही आ रहा था लेकिन क्‍योंकि वह बचपन से ही गूूंगा व एक पैर से अपाहिज था इसलिए न तो पण्डित तक पहुंच पा रहा था और न ही पण्डित को आवाज देकर रोक पा रहा था।

लेकिन जैसे ही वह पण्डित के पास पहुंचा- अचानक न जाने क्‍या हुआ और उसकी मृत्‍यु हो गई।
पण्डित हक्‍का-बक्‍का सा आश्‍चर्य भरी नजरों से महाकाल की ओर देखने लगा – जैसे कि पूछ रहा हो कि आखिर हुआ क्‍या उसके मित्र को।

महाकाल, पण्डित के मन की बात समझ गया और बोला- तुम्‍हारा मित्र पिछले गांव से ही तुम्‍हारे पीछे-पीछे आ रहा था लेकिन तुम समझ ही सकते हो कि वह अपाहिज व गूंगा होने की वजह से ही तुम तक नहीं पहुंच सका। उसने अपनी सारी ताकत लगाकर तुम तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन बुढापे में बचपन जैसी शक्ति नहीं होती शरीर में, इसलिए हृदयाघात की वजह से तुम्‍हारे मित्र की मृत्‍यु हो गई और उसकी वजह हो तुम क्‍योंकि वह तुमसे मिलने हेतु तुम तक पहुंचने के लिए ही अपनी सीमाओं को लांघते हुए तुम्‍हारे पीछे भाग रहा था!

अब पण्डित को पूरी तरह से विश्‍वास हो गया कि महाकाल सचमुच ही यमदूत है और जीवों के प्राण हरण करना ही उसका काम है।

चूंकि पण्डित एक ज्ञानी व्‍यक्ति था और जानता था कि मृत्‍यु पर किसी का कोई बस नहीं चल सकता और सभी को एक न एक दिन मरना ही है, इसलिए उसने जल्‍दी ही अपने आपको सम्‍भाल लिया लेकिन सहसा ही उसके मन में अपनी स्‍वयं की मृत्‍यु के बारे में जानने की उत्‍सुकता हुई। इसलिए उसने महाकाल से पूछा- अगर मृत्‍यु मेरे मित्र की होनी थी, तो तुम शुरू से ही मेरे साथ क्‍यों चल रहे थे?

महाकाल ने जवाब दिया- मैं तो सभी के साथ चलता हूॅं और हर क्षण चलता रहता हूॅं केवल लोग मुझे पहचान नहीं पाते क्‍योंकि लोगों के पास अपनी समस्‍याओं के अलावा किसी और व्‍यक्ति, वस्‍तु या घटना के संदर्भ में सोचने या उसे देखने,समझने का समय ही नहीं है।

पण्डित ने आगे पूछा- तो क्‍या तुम बता सकते हो कि मेरी मृत्‍यु कब और कैसे होगी?

महाकाल ने कहा- हालांकि किसी भी सामान्‍य जीव के लिए ये जानना उपयुक्‍त नहीं है, क्‍योंकि कोई भी जीव अपनी मृत्‍यु के संदर्भ में जानकर व्‍यथित ही होता है! लेकिन तुम ज्ञानी व्‍यक्ति हो और अपने मित्र की मृत्‍यु को जितनी आसानी से तुमने स्‍वीकार कर लिया है, उसे देख मुझे ये लगता है कि तुम अपनी मृत्‍यु के बारे में जानकर भी व्‍यथित नहीं होगे। सो, तुम्‍हारी मृत्‍यु आज से ठीक छ: माह बाद आज ही के दिन लेकिन किसी दूसरे राजा के राज्‍य में फांसी लगने से होगी! और आश्‍चर्य की बात ये है कि तुम स्‍वयं खुशी से फांसी को स्‍वीकार करोगे।
इतना कहकर महाकाल जाने लगा क्‍योंकि अब उसके पास पण्डित के साथ चलते रहने का कोई कारण नहीं था।

पण्डित ने अपने मित्र का यथास्थिति जो भी कर्मकाण्‍ड सम्‍भव था, किया और फिर से अपने गांव लौट आया। लेकिन कोई व्‍यक्ति चाहे जितना भी ज्ञानी क्‍यों न हो, अपनी मृत्‍यु के संदर्भ में जानने के बाद कुछ तो व्‍यथित होता ही है और उस मृत्‍यु से बचने के लिए कुछ न कुछ तो करता ही है- सो पण्डित ने भी किया।*

चूंकि पण्डित विद्वान था! इसलिए उसकी ख्‍याति- उसके राज्‍य के राजा तक थी। उसने सोंचा कि राजा के पास तो कई ज्ञानी मंत्री होते हैं और वे उसकी इस मृत्‍यु से सम्‍बंधित समस्‍या का भी कोई न कोई समाधान तो निकाल ही देंगे।
इसलिए वह पण्डित राजा के दरबार में पहुंचा और राजा को सारी बात बताई।

राजा ने पण्डित की समस्‍या को अपने मंत्रियों के साथ बांटा और उनसे सलाह मांगी!

अन्‍त में सभी की सलाह से ये तय हुआ कि यदि पण्डित की बात सही है, तो जरूर उसकी मृत्‍यु 6 महीने बाद होगी! लेकिन मृत्‍यु तब होगी, जब कि वह किसी दूसरे राज्‍य में जाएगा। यदि वह किसी दूसरे राज्‍य में जाए ही न, तो मृत्‍यु नहीं होगी। ये सलाह राजा को भी उपयुक्‍त लगी!

सो उसने पण्डित के लिए महल में ही रहने हेतु उपयुक्‍त व्‍यवस्‍था करवा दी। अब राजा की आज्ञा के बिना कोई भी व्‍यक्ति उस पण्डित से नहीं मिल सकता था लेकिन स्‍वयं पण्डित कहीं भी आ-जा सकता था ताकि उसे ये न लगे कि वह राजा की कैद में है। हालांकि वह स्‍वयं ही डर के मारे कहीं आता-जाता नहीं था।

धीरे-धीरे पण्डित की मृत्‍यु का समय नजदीक आने लगा और आखिर वह दिन भी आ गया, जब पण्डित की मृत्‍यु होनी थी।
तो जिस दिन पण्डित की मृत्‍यु होनी थी, उससे पिछली रात पण्डित डर के मारे जल्‍दी ही सो गया – ताकि जल्‍दी से जल्‍दी वह रात और अगला दिन बीत जाए और उसकी मृत्‍यु टल जाए।

लेकिन स्‍वयं पण्डित को नींद में चलने की बीमारी थी और इस बीमारी के बारे में वह स्‍वयं भी नहीं जानता था! इसलिए राजा या किसी और से इस बीमारी का जिक्र करने अथवा किसी चिकित्‍सक से इस बीमारी का ईलाज करवाने का तो प्रश्‍न ही नहीं था।

चूंकि पण्डित अपनी मृत्‍यु को लेकर बहुत चिन्तित था और नींद में चलने की बीमारी का दौरा अक्‍सर तभी पड़ता है – जब ठीक से नींद नहीं आ रही होती! सो उसी रात पण्डित रात को नींद में चलने का दौरा पडा! वह उठा और राजा के महल से निकलकर अस्‍तबल में आ गया। चूंकि वह राजा का खास मेहमान था, इसलिए किसी भी पहरेदार ने उसे न ताे रोका न किसी तरह की पूछताछ की। अस्‍तबल में पहुंचकर वह सबसे तेज दौडने वाले घोडे पर सवार होकर नींद की बेहोशी में ही राज्‍य की सीमा से बाहर दूसरे राज्‍य की सीमा में चला गया। इतना ही नहीं, वह दूसरे राज्‍य के राजा के महल में पहुंच गया और संयोग हुआ ये कि उस महल में भी किसी पहरेदार ने उसे नहीं रोका न ही कोई पूछताछ की क्‍योंकि सभी लोग रात के अन्तिम प्रहर की गहरी नींद में थे।

वह पण्डित सीधे राजा के शयनकक्ष में पहुंच गया। जहाँ उस राज्‍य का राजा सो रहा था उनके बगल में स्‍वयं पण्डित जाकर लेट गया।
सुबह हुई, तो राजा ने पण्डित को रानी की बगल में सोया हुआ देखा। राजा बहुत क्रोधित हुआ। पण्डित काे गिरफ्तार कर लिया गया!

पण्डित को तो खुद ही समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह आखिर दूसरे राज्‍य में और सीधे राजा के ही शयनकक्ष में कैसे पहुंच गया।

लेकिन वहां उसकी सुनने वाला कौन था। राजा ने पण्डित को राज दरबार में हाजिर करने का हुक्‍म दिया। कुछ समय बाद राजा का दरबार लगा, जहां राजा ने पण्डित को देखा और देखते ही इतना क्रोधित हुआ कि पण्डित को फांसी पर चढ़ा दिए जाने का फरमान सुना दिया।

फांसी की सजा सुनकर पण्डित कांप गया। फिर भी हिम्‍मत कर उसने राजा से कहा कि महाराज, मैं नहीं जानता कि मैं इस राज्‍य में कैसे पहुंचा। मैं ये भी नहीं जानता कि मैं आपके शयनकक्ष में कैसे आ गया और आपके राज्‍य के किसी भी पहरेदार ने मुझे रोका क्‍यों नहीं लेकिन मैं इतना जानता हुं कि आज मेरी मृत्‍यु होनी थी और होने जा रही है।

राजा को ये बात थोड़ी अटपटी लगी। उसने पूछा- तुम्‍हें कैसे पता कि आज तुम्‍हारी मृत्‍यु होनी थी? कहना क्‍या चाहते हो तुम?_

राजा के सवाल के जवाब में पण्डित से पिछले 6 महीनों की पूरी कहानी बता दी और कहा कि- महाराज, मेरा क्‍या! किसी भी सामान्‍य व्‍यक्ति का इतना साहस कैसे हो सकता है कि वह राजा राजा के ही कक्ष में और उनके बगल में सो जाए। ये तो सरासर आत्‍महत्‍या ही होगी और मैं दूसरे राज्‍य से इस राज्‍य में आत्‍महत्‍या करने क्‍यों आऊंगा?

राजा को पण्डित की बात थोडी उपयुक्‍त लगी लेकिन राजा ने सोंचा कि शायद वह पण्डित मृत्‍यु से बचने के लिए ही महाकाल और अपनी मृत्‍यु की भविष्‍यवाणी का बहाना बना रहा है। इसलिए उसने पण्डित से कहा कि- यदि तुम्‍हारी बात सत्‍य है और आज तुम्‍हारी मृत्‍यु का दिन है, जैसा कि महाकाल ने तुमसे कहा है तो तुम्‍हारी मृत्‍यु का कारण मैं नहीं बनूंगा!

लेकिन यदि तुम झूठ कह रहे हो तो निश्चित ही आज तुम्‍हारी मृत्‍यु का दिन है।_

चूंकि पड़ोसी राज्‍य का राजा उसका मित्र था इसलिए उसने तुरन्‍त कुछ सिपाहियों के साथ दूसरे राज्‍य के राजा के पास पत्र भेजा और पण्डित की बात की सत्‍यता का प्रमाण मांगा।

शाम तक भेजे गए सैनिक फिर से लौटे और उन्‍होंने आकर बताया कि- महाराज, पण्डित जो कह रहा है, वह सच है। दूसरे राज्‍य के राजा ने पण्डित को अपने महल में ही रहने की सम्‍पूर्ण व्‍यवस्‍था दे रखी थी और पिछले 6 महीने से ये पण्डित राजा का मेहमान था। कल रात राजा स्‍वयं इससे अन्तिम बार इसके शयन कक्ष में मिले थे और उसके बाद ये इस राज्‍य में कैसे पहुंच गया, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। इसलिए उस राज्‍य के राजा के अनुसार पण्डित को फांसी की सजा दिया जाना उचित नहीं है।

लेकिन अब राजा के लिए एक नई समस्‍या आ गई। चूंकि उसने बिना पूरी बात जाने ही पण्डित को फांसी की सजा सुना दी थी इसलिए अब यदि पण्डित को फांसी न दी जाए तो राजा के कथन का अपमान हो और यदि राजा द्वारा दी गई सजा का मान रखा जाए तो पण्डित की बेवजह मृत्‍यु हो जायेगी

राजा ने अपनी इस समस्‍या का जिक्र अपने अन्‍य मंत्रियों से किया और सभी मंत्रियों ने आपस में चर्चा कर ये सुझाव दिया कि- महाराज! आप पण्डित को कच्‍चे सूत के एक धागे से फांसी लगवा दें। इससे आपके वचन का मान भी रहेगा और सूत के धागे से लगी फांसी से पण्डित की मृत्‍यु भी नहीं होगी, जिससे उसके प्राण भी बच जाऐंगे।

राजा को ये विचार उपयुक्‍त लगा और उसने ऐसा ही आदेश सुनाया। पण्डित के लिए सूत के धागे का फांसी का फन्‍दा बनाया गया और नियमानुसार पण्डित को फांसी पर चढाया जाने लगा। सभी खुश थे कि न तो पण्डित मरेगा, न राजा का वचन झूठा पड़ेगा।
पण्डित को भी विश्‍वास था कि सूत के धागे से तो उसकी मृत्‍यु नहीं होगी इसलिए वह भी खुशी- खुशी फांसी चढ़ने को तैयार था! जैसा कि महाकाल ने उसे कहा था।

लेकिन जैसे ही पण्डित को फांसी दी गई- सूत का धागा तो टूट गया! लेकिन टूटने से पहले उसने अपना काम कर दिया क्योंकि पण्डित के गले की नस कट चुकी थी उस सूत के धागे से और पण्डित जमीन पर पड़ा तड़प रहा था! हर धड़कन के साथ उसके गले से खून की फूहार निकल रही थी और देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में पण्डित का शरीर पूरी तरह से शान्‍त हो गया। सभी लोग आश्‍चर्यचकित, हक्‍के-बक्‍के से पण्डित को मरते हुए देखते रहे! किसी को विश्‍वास ही नहीं हो रहा था कि एक कमजाेर से सूत के धागे से किसी की मृत्‍यु हो सकती है?
लेकिन घटना घट चुकी थी! नियति ने अपना काम कर दिया था।

सच ही कहा है कि – नियति के आगे सभी को नत मस्तक होना होता है!
जब, जो होना होता है, वह होकर ही रहता है। हम चाहे जितनी सावधानियां बरतें या चाहे जितने ऊपाय कर लें लेकिन हर घटना और उस घटना का सारा ताना-बाना पहले से निश्चित है – जिसे हम रत्‍ती भर भी इधर-उधर नहीं कर सकते।

इसीलिए ईश्‍वर ने सभी को भविष्‍य जानने की क्षमता नहीं दी है ताकि लोग अपने जीवन को ज्‍यादा बेहतर तरीके से जी सकें।

विधिना ने लिख दिया, छठी रात के अंत!
राई घटे न तिल बड़े, रह रे जीव निशंक !!


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