Thirty-three gods are thirty-three crore gods

तैंतीस देव ही तैंतीस कोटि देवता हैं

एक बार राजा जनक की सभा में ऋषि शाकल्य ने ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य से प्रश्न किया, ‘देवता कितने हैं ?’ याज्ञवल्क्य ने उत्तर देते हुए कहा, ‘तीन सहस्र तीन सौ छह।’ शाकल्य ने कहा, ‘ठीक है।’ लेकिन उनका प्रश्न फिर वही का वही था कि कितने देवता हैं? याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘तैतीस।’ ‘ठीक है,’ शाकल्य ने कहा। परंतु फिर से अपना प्रश्न दोहराते हुए उन्होंने पूछा, ‘कितने देवता हैं?’ याज्ञवल्क्य ने एक बार फिर उत्तर देते हुए कहा, ‘छह देव हैं।’ शाकल्य का फिर वही कहना था, ‘ठीक है।’ और फिर से उन्होंने अपना प्रश्न दोहरा दिया कि कितने देवता हैं? याज्ञवल्क्य ने पुनः उनकी जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा, ‘केवल तीन देव हैं।’ शाकल्य ने कहा, ‘ठीक है।’ और फिर प्रश्न किया, ‘मैं आपसे जानना चाहता हूं कि कितने देवता हैं?’ याज्ञवल्क्य ने हर बार की तरह शांत भाव से उत्तर दिया, ‘दो देवता हैं।’ उत्तर के जवाब में शाकल्य ने कहा, ‘ठीक है।’ लेकिन शाकल्य ने फिर पूछा, ‘कितने देवता हैं?’ याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, ‘एक देव है।’ शाकल्य ने कहा, ‘ठीक है, तो फिर तीन सहस्र तीन सौ छह देव कौन हैं?’ याज्ञवल्क्य ने इस ‘तो’ के उत्तर में कहा, ‘परमपिता तो एक हैं लेकिन देवता तैंतीस हैं और बाकी देवगण हैं।’ शाकल्य के प्रश्नों का सिरा छूट नहीं रहा था। उन्होंने फिर पूछा,’ तैंतीस देवता कौन हैं?’ याज्ञवल्क्य ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र तथा प्रजापति सहित तैंतीस देव हैं।’

शाकल्य का फिर प्रश्न था, ‘वसु कौन हैं?’ याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘अग्नि, पृथ्वी, वायु, अंतरिक्ष, आदित्य, द्युलोक, चंद्रमा एवं नक्षत्र- ये आठ वसु हैं।’ ‘रुद्र कौन हैं?’ शाकल्य का प्रश्न था। याज्ञवल्क्य ने उत्तर देते हुए कहा, ‘मनुष्य में दस प्राण और ग्यारहवीं आत्मा। रुद्र इस मरणशील शरीर

से आत्मा को बांधे रखते हैं। शरीर से दस रुद्रों के जाते ही आत्मा भी शरीर को त्याग देती है। रुला देने के कारण इन्हें रुद्र कहा गया है।’ शाकल्य ने पूछा, ‘और आदित्य कौन हैं?’ याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, ‘संवत्सर में बारह मास होते हैं, ये ही आदित्य हैं। ये सबको ग्रहण करते हुए चलने के कारण आदित्य कहलाते हैं।’ शाकल्य का फिर प्रश्न, ‘इंद्र और प्रजापति कौन हैं?’ याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘स्तनयित्नु इंद्र हैं और यज्ञ प्रजापति हैं।’ इस प्रकार आठ वसु, बारह आदित्य, ग्यारह रुद्र तथा इंद्र और प्रजापति सहित तैंतीस कोटि देवता हैं। कुछ विद्वान इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्वनी कुमारों की गिनती तैंतीस कोटि देवताओं में करते हैं।’

‘शतपथ ब्राह्मण’ में ऋषि शाकल्य का दूसरा नाम विदग्ध भी मिलता है। इन्होंने ही सबसे पहले ऋग्वेद के पदपाठ को ठीक करके वाक्यों की संधियों को तोड़कर पदों को अलग-अलग स्मरण करने की पद्धति चलाई थी। ‘स्कंद पुराण’ के अनुसार पांड्य नरेश शंकर ने व्याघ्र के धोखे में पत्नी सहित इनका वध कर दिया था। शाकल्य राजा जनक की विद्वत सभा में सभा पंडित थे और वे याज्ञवल्क्य के प्रतिद्वंद्वी थे।

Once in the meeting of King Janak, sage Shakalya asked Brahmaveta Yajnavalkya a question, ‘How many gods are there?’ Yajnavalkya replied, ‘Three thousand three hundred and six.’ Shakalya said, ‘Okay.’ But his question was the same again, how many gods are there? Yajnavalkya said, ‘Thirty-three.’ ‘Okay,’ said Shakalya. But repeating his question again he asked, ‘How many gods are there?’ Yajnavalkya once again replied, ‘There are six gods.’ Shakalya again had the same thing to say, ‘Okay.’ And again he repeated his question, how many gods are there? Yajnavalkya again satisfied his curiosity and said, ‘There are only three gods.’ Shakalya said, ‘Okay.’ And then asked the question, ‘I want to know from you how many gods are there?’ Like every time, Yajnavalkya replied calmly, ‘There are two gods.’ In response Shakalya said, ‘Okay.’ But Shakalya again asked, ‘How many gods are there?’ Yajnavalkya replied, ‘There is a god.’ Shakalya said, ‘Okay, then who are the three thousand three hundred and six gods?’ Yajnavalkya replied to this question, ‘There is only one Supreme Father but there are thirty-three gods and the rest are gods.’ There was no end to Shakalya’s questions. He then asked, ‘Who are the thirty-three gods?’ Yajnavalkya said in answer to this question, ‘There are thirty-three gods including eight Vasus, eleven Rudras, twelve Adityas, Indra and Prajapati.’

Shakalya’s next question was, ‘Who is Vasu?’ Yajnavalkya said, ‘Fire, earth, air, space, Aditya, heaven, moon and stars – these are the eight Vasus.’ ‘Who is Rudra?’ It was Shakalya’s question. Yajnavalkya replied, ‘There are ten souls and eleventh soul in man. Rudra this mortal body

Keeps the soul bound to. As soon as the ten Rudras leave the body, the soul also leaves the body. He has been called Rudra because he makes people cry. Shakalya asked, ‘And who is Aditya?’ Yajnavalkya replied, ‘There are twelve months in Samvatsara, these are the Adityas. He is called Aditya because he accepts everyone and moves around. Shakalya then asked, ‘Who are Indra and Prajapati?’ Yajnavalkya said, ‘Stanayitnu is Indra and Yagya is Prajapati.’ Thus there are eight Vasus, twelve Adityas, eleven Rudras and thirty-three crore gods including Indra and Prajapati. Some scholars count two Ashwani Kumars among the thirty-three crore gods in place of Indra and Prajapati.

Another name of sage Shakalya, Vidagdha, is also found in ‘Shatapatha Brahmana’. He was the first to correct the text of Rigveda and introduced the method of memorizing the verses separately by breaking the joints of the sentences. According to ‘Skanda Purana’, Pandya King Shankar had killed him along with his wife under the influence of a tiger. Shakalya was the sabha pandit in the learned assembly of king Janak and he was the rival of Yajnavalkya.


Discover more from Soa Technology | Aditya Website Development Designing Company

Subscribe to get the latest posts sent to your email.



Leave a Reply

Discover more from Soa Technology | Aditya Website Development Designing Company

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading