वाणी की मधुरता

वाणी की मधुरता

एक बार एक राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके सारे दाँत टूट गये है, केवल सामने का एक बड़ा दाँत ही मुँह में बचा है।

सुबह राजा ने दरबार में अपना स्वप्न सुनाया, और उसका प्रतिफल जानना चाहा। मंत्रियों ने सलाह दी कि स्वप्न विशेषज्ञों को बुलाकर स्वप्न का फलादेश पूछा जायें।

राज्य में ढिंढोरा फिरवा कर घोषणा कि गयी कि जो भी विद्वान, ज्ञानी, राजा को उनके स्वप्न का फलादेश बतायेगा, उसे उचित ईनाम दिया जायेगा। कई व्यक्ति दरबार में आये, परन्तु कोई भी राजा को सही जवाब से संतुष्ट नहीं कर सका।

एक दिन एक विद्वान व्यक्ति जिसने काशी से विद्या प्राप्त की थी, दरबार में आया और बोला…..
“महाराज! मैं आपके स्वप्न का सही फलादेश बता सकता हूँ।”

राजा सहित सभी दरबारी जिज्ञासा से उस व्यक्ति की ओर देखने लगे। राजा ने अपना स्वप्न सुनाकर कर कहा, “बताइये मेरे इस स्वप्न का फलादेश क्या है?”

उस व्यक्ति ने कहा.. “राजन! आपका यह स्वप्न तो बहुत बेकार है। इसके फल स्वरूप आपके सामने ही आपके परिवार के सभी सदस्य मर जायेगें और आप सबके बाद मरेगें।”

यह सुनते ही राजा को क्रोध आगया और उस व्यक्ति को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया।

दूसरे दिन एक साधारण सा व्यक्ति दरबार में आया और बोला, “राजन! आप अपना स्वप्न मुझे बताइये, मैं उसका सही फलादेश बताने की कोशिश करुगाँ।”

राजा ने अपना स्वप्न सुनाया,स्वप्न सुनकर वह व्यक्ति कुछ देर सोचने के बाद बोला, “राजन! यह बहुत ही अच्छा स्वप्न आया हैं आपको।
हम सभी प्रजा जन पर ईश्वर की विशेष कृपा है कि आप जैसे धर्मात्मा, पुण्यात्मा और प्रजापालक राजा को दीर्घायु (लंबी आयु) दी हैं। राजन आपके परिवार में आपकी आयु सबसे लंबी होगी। इस राज्य का यह सौभाग्य है कि आप कई वर्षो तक राज्य करेगें।”

स्वप्न का फलादेश सुनकर राजा बहुत खुश हुआ, और उस व्यक्ति का विशेष सम्मान कर उसे काफी धन दिया।

दोनों ही व्यक्तियों ने स्वप्न का एक ही फलादेश बताया, दोनो का एक ही मतलब था।
फिर भी एक व्यक्ति को बंदी बनाकर जेल भेजा गया और दूसरे को विशेष सम्मान कर उसे धन-दौलत का ईनाम मिला! क्यों?

क्योंकि एक व्यक्ति ने महान विद्वान होते हुए भी अपने उत्तर और बोलने में उचित शब्दो का प्रयोग नहीं किया! जबकि दुसरे व्यक्ति ने, साधारण होते हुए भी अपने उत्तर और बातचीत में उचित और सही शब्दो का प्रयोग किया।

तभी कहा गया है –
शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव,
एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव!!

शब्द सम्भाले बोलियेे, शब्द खीँचते ध्यान!
एक शब्द मन घायल करेँ, एक शब्द बढाते मान!!

शब्द मुँह से छूट गया, शब्द न वापस आय!
शब्द जो हो प्यार भरा, शब्द ही मन मेँ समाएं!!

शब्द मेँ है भाव रंग का, शब्द है मान महान!
शब्द ही जीवन रुप है, शब्द ही दुनिया जहान!!

शब्द ही कटुता रोप देँ, शब्द ही बैर हटाएं!
शब्द जोङ देँ टूटे मन, शब्द ही प्यार बढाएं!!

मतलब, उचित, सम्मानित शब्दों के प्रयोग और मीठा और सभ्य बोलने के तरीके से दुश्मन के मन में भी प्यार भर जाता है,और ऐसे ही गलत शब्दों के प्रयोग असभ्य,अमर्यादित व रूखा बोलने के तरीकों से अपनों के दिलो में भी नफरत पैदा कर हो जाती है।
ध्यान रहे, हमें रोज की बोलचाल, बातचीत और व्यवहार में नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करना चाहिये! अन्यथा हर दिन महाभारत का सामना करना पड़ सकता है!




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