एक साधु से किसी व्यक्ति ने कहा कि उसके विचारों का प्रवाह उसे बहुत परेशान कर रहा है।

एक साधु से किसी व्यक्ति ने कहा कि उसके विचारों का प्रवाह उसे बहुत परेशान कर रहा है।

उस साधु ने उसे निदान और चिकित्सा के लिए अपने एक मित्र साधु के पास भेजा और उससे कहा, जाओ और उसकी समग्र जीवन-चर्या ध्यान से देखो। उससे ही तुम्हें मार्ग मिलने को है।
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वह व्यक्ति गया। जिस साधु के पास उसे भेजा गया था – वह सराय में रखवाला था।
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उसने वहां जाकर कुछ दिन तक उस साधू की दैनिकचर्या देखी। लेकिन, उसे उसमें कोई खास बात सीखने जैसी दिखाई नहीं पड़ी।
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वह साधु अत्यंत सामान्य और साधारण व्यक्ति था। उसमें कोई ज्ञान के लक्षण भी दिखाई नहीं पड़ते थे।
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हां, बहुत सरल था और शिशुओं जैसा निर्दोष मालूम होता था, लेकिन उसकी चर्या में तो कुछ भी न था।
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फिर भी उस व्यक्ति ने साधु की पूरी दैनिकचर्या देखी थी कि केवल रात्रि में सोने के पहले और सुबह जागने के बाद वह क्या करता था; वही भर उसे ज्ञात नहीं हुआ था।
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उसने उस साधू से ही उसकी दिनचर्या के बारे में पूछा।
साधु ने कहा, मेरी दिन मेरी दिनचर्या में कुछ भी नहीं। मैं रात्रि को सारे बर्तन मांजता हूं और चूंकि रात्रि भर में उनमें थोड़ी बहुत धूल पुन: जम जाती है, इसलिए सुबह उन्हें फिर धोता हूं।
.मैं समझता हूँ कि –
बरतन गंदे और धूल भरे न हों, यह ध्यान रखना आवश्यक है। मैं इस सराय का रखवाला जो हूं।

उस व्यक्ति के समझ में कुछ भी नहीं आया और वह व्यक्ति इस साधु के पास से अत्यंत निराश होकर अपने गुरु के पास लौटा।
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उसने साधु की दैनिकचर्या और उससे हुई बातचीत गुरु को बताई।
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उसके गुरु ने कहा, जो जानने योग्य था, वह तुम सुन और देख आये हो। लेकिन समझ नहीं सके।
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उसने इशारे से ही तुमको बतला दिया कि –
रात्रि तुम भी अपने मन रुपी बर्तन को मांजो और सुबह उसे पुन: धो डालो। धीरे-धीरे तुम्हारा चित्त निर्मल हो जाएगा।

हमारा शरीर एक सराय ही तो है और हम उसके रखवाले। अतः चित्त की नित्य सफाई अत्यंत आवश्यक है। उसके स्वच्छ होने पर ही समग्र जीवन की स्वच्छता या अस्वच्छता निर्भर है।

इसलिय सदगुरु से ज्ञान प्राप्त भक्तों को प्रतिदिन भजन-अभ्यास करके अपने अन्तरमन को साफ़ रखना चाहिय!

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