भक्ति दान मोहि दीजिये…..

एक गरीब आदमी था।वो हर रोज अपने गुरु जी के आश्रम जाकर वहांँ पर साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था।
अक्सर वो अपने गुरु जी से कहता कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाये।

एक दिन गुरु जी ने पूछ ही लिया कि क्या तुम आश्रम में इसीलिए सेवा करने आते हो?
उसने पूरी ईमानदारी से कहा कि हांँ, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढेर सारा धन आ जाये, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूंँ। पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूंँ। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आयेंगे।
गुरु जी ने कहा कि – तुम चिन्ता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आयेगा तब तुम्हें कोई आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा।

युवक चला गया।
समय ने पलटा खाया, काम-धन्धा खूब चलने लगा वो अधिक धन कमाने लगा। इतना व्यस्त हो गया कि आश्रम में जाना ही छूट गया। कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही आश्रम पहुंँचा और साफ-सफाई करने लगा।

गुरु जी ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा- क्या बात है, इतने बरसों बाद आये हो? सुना है बहुत बड़े सेठ बन गये हो।

वो व्यक्ति बोला- बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियांँ की! पैसे की कोई कमी नहीं है पर दिल में शान्ति नहीं है। ऐसा लगता था रोज सेवा करने आता रहूंँ! पर आ ना सका! गुरु जी आपने मुझे सब कुछ दिया पर जिन्दगी में शान्ति नहीं दी?

गुरु जी ने कहा कि तुमने मेरे पास शान्ति (चैन) मांँगा ही कब था? जो तुमने मांँगा वो तो तुम्हें मिल गया ना। फिर आज यहांँ क्या करने आए हो।

उसकी आंँखों में आंँसू भर आए! गुरु जी के श्रीचरणों में गिर पड़ा और बोला – अब कुछ मांँगने के लिए सेवा नहीं करूंँगा। दिल को शान्ति मिल जाये, बस।

गुरू जी ने कहा- पहले तय कर लो कि अब कुछ माँगने के लिए आश्रम की सेवा नहीं करोगे! बस मन की शान्ति के लिए ही आओगे।

उन्होंने ने समझाया कि चाहे मांँगने से कुछ भी मिल जाये पर दिल का (चैन) शान्ति कभी नहीं मिलती इसलिए सेवा के बदले कुछ मांँगना नहीं है।
वो व्यक्ति अपने गुरुदेव को सुनता रहा और बोला- गुरू जी मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप बस, मुझे सेवा करने दीजिए।

यह सत्य है कि – सच्चे गुरू की शरणागत होने पर उनके दरवार में डिमाण्ड और कमांड वाली सोच को त्यागना होगा! तभी अलोकिक आनन्द मिल पायेगा जो सदा भक्त की कल्पना से परे की स्थिति होती है!




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