सबसे-बड़ा-मूर्ख

एक बहुत धनी व्यापारी था। उसने बहुत धन सम्पत्ति इकट्ठा कर रखी थी। उसका एक नौकर था सम्भु। जो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा गरीबों की मदद में खर्च कर देता था। व्यापारी रोज उसे धन बचाने की शिक्षा देता। लेकिन सम्भु पर कोई असर नहीं होता था।

इससे तंग आकर एक दिन व्यापारी ने सम्भु को एक डन्डा दिया और कहा कि जब तुझे अपने से भी बड़ा कोई मूर्ख मिले तो इसे उसको दे देना।

इसके बाद व्यापारी अक्सर उससे पूछता कि कोई तुझसे बड़ा मूर्ख मिला?

सम्भु विनम्रता से इनकार कर देता।

एक दिन व्यापारी बीमार हो गया। रोग इतना बढ़ा कि वह मरणासन्न हो गया।

अन्तिम समय उसने सम्भु को अपने पास बुलाया और कहा कि अब मैं इस संसार को छोड़कर जाने वाला हूँ।

सम्भु ने कहा, “मालिक मुझे भी अपने साथ ले चलिए।”

व्यापारी ने प्यार से डांँटते हुए कहा, “वहांँ कोई किसी के साथ नहीं जाता।”

सम्भु ने फिर कहा, ”फिर तो आप धन-दौलत, सुख- सुविधा के सामान जरूर ले जाइये और आराम से वहांँ रहियेगा।”

व्यापारी ने कहा, ”पगले! वहांँ कुछ भी लेकर नहीं जाया जा सकता। सबको अकेले और खाली हाथ ही जाना पड़ता है।”

इस पर सम्भु बोला, “मालिक! तब तो यह डन्डा आप ही रखिये। जब कुछ लेकर जाया नहीं जा सकता। तो आपने बेकार ही पूरा जीवन धन दौलत और सुख सुविधाओं को एकत्र करने में नष्ट कर दिया। न तो दान पुण्य किया, न ही भगवान का भजन-सुमिरण। इस डंडे के असली हकदार तो आप ही हो।”

इसलिए अधिक धन का लोभ नहीं करना चाहिए। क्योंकि अन्त समय में मनुष्य के साथ कुछ नहीं जाता केवल सेवा, सतसंग, नाम-सुमिरण की कमाई ही साथ जायेगी।




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