दोनों यात्री हैं परंतु दोनों के कथन का भाव अलग-अलग है।” 🏵️
दो प्रकार की यात्रा होती है।
एक – घूमने फिरने वाले लोगों की सड़क या रेल मार्ग की यात्रा।
और दूसरी – आध्यात्मिक यात्रा। इसका लक्ष्य मोक्ष होता है।
एक बार, रेल सड़क मार्ग से जाने वाला एक यात्री, जो देश भर में सैर सपाटा करने निकला था, वह घूमते घूमते एक साधु महाराज की कुटिया में पहुंच गया। उसने सोचा, कि “यहां थोड़ी देर विश्राम कर लूं, कुछ भोजन कर लूं। फिर आगे की यात्रा करूंगा।”
वह साधु महाराज की कुटिया के अंदर गया। उसने देखा, कि
“टेबल कुर्सी फर्नीचर आदि कुछ नहीं है। एक पुरानी सी चटाई है, जिस पर साधु महाराज बैठे हैं, और अपने प्रभु चिंतन में मस्त हैं।”
उस यात्री ने पूछा, “महाराज! आपका टेबल कुर्सी आदि फर्नीचर कहां है?”
यह प्रश्न सुनकर साधु महाराज ने, यात्री के प्रश्न का उत्तर देने से पहले, उसी से प्रतिप्रश्न किया कि “आपका फर्नीचर कहां है?”
उस घूमने वाले यात्री ने कहा, “मैं तो यात्री हूं। मैं फर्नीचर नहीं रखता।”
साधु महाराज ने कहा, “मैं भी यात्री हूं। मैं भी फर्नीचर नहीं रखता।”
इन दोनों यात्रियों के शब्द तो एक समान हैं, परंतु भाव दोनों का अलग-अलग है।
“घूमने वाला यात्री कुर्सी टेबल आदि फर्नीचर इस कारण से नहीं रखता, क्योंकि वह यात्रा में बाधक है।”
और “दूसरा मोक्ष की ओर चलने वाला यात्री साधु महाराज भी कुर्सी टेबल आदि फर्नीचर इसलिए नहीं रखता, क्योंकि वह मोक्ष की यात्रा में भी बाधक है।
सार यह हुआ कि दोनों प्रकार की यात्राओं में अधिक सामान बाधक है।”
अब इन दोनों का भाव अलग-अलग होते हुए भी, एक बात दोनों में समान है, कि “यात्रा में सामान कम से कम रखना चाहिए, जिससे कि यात्रा में कठिनाई न हो और यात्रा सुखद रहे।”
इस दृष्टांत पर आप भी चिंतन कीजिएगा। वैसे तो सभी ही मोक्ष लक्ष्य वाले यात्री ही हैं। परंतु कोई व्यक्ति इस बात को समझ जाता है, कि मैं मोक्ष लक्ष्य वाला यात्री हूं। और कोई व्यक्ति नहीं समझ पाता।
“जो स्वयं को मोक्ष लक्ष्य वाली यात्रा का यात्री नहीं समझ पाता, वह संसार की यात्रा करता रहता है। और जो मोक्ष को लक्ष्य समझ लेता है, वह आध्यात्मिक यात्रा करता है। यदि आप भी मोक्ष वाली यात्रा के यात्री हों, तो अपना फर्नीचर आदि सामान धीरे धीरे कम करते जाएं। और यदि रेल सड़क की यात्रा वाले यात्री हों, तो भी यात्रा में सामान कम रखें। क्योंकि जितना सामान कम रखेंगे, उतने अधिक सुखी रहेंगे।”
भूले मन समझ के लड़ लदनिया,
थोडा लाद बहुत मत लादे,
टूट जाये तेरि गरदनिया,
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