Enlightenment alone pacifies all desires

आत्मज्ञान ही सब इच्छाओं को शान्त करता है……

कोई तन दुखी, कोई मन दुःखी, कोई चित उदास।
थोड़ा-थोड़ा सब दुःखी, सुखिया गुरु का दास।।

आज मनुष्य अपनी आवश्यकताओं से दुखी नहीं है
अपितु अपनी अनन्त इच्छाओं से वह सदैव दुःखी रहता है।
दुःख का मूल कारण हमारी आवश्कतायें नहीं, हमारी इच्छायें हैं।
हमारी आवश्यकतायें तो कभी पूर्ण भी हो सकती हैं मगर इच्छायें नहीं।
इच्छायें आज तक किसी की भी पूरी नहीं हो पाई हैं।
एक इच्छा पूरी होती है कि मन में दूसरी इच्छा का जन्म हो जाता है।
सुखी जीवन जीने का केवल एक ही रास्ता है
और वह है – अध्यात्म मार्ग की तरफ बढ़ना यानि आत्मज्ञान का अभ्यास करना!
आज हमारी स्थिति यह है कि जो हमें प्राप्त है उसका आनन्द तो हम लेते नहीं, वरन जो प्राप्त नहीं है उसका चिन्तन करके जीवन को दुःखमय बना लेते हैं।

वास्तव में, दुःख का मूल कारण हमारी आशा-अपेक्षा ही हैं।

हमें इस संसार में कोई दुःखी नहीं कर सकता, हमारी अपेक्षायें ही हमें रुलाती हैं।
अति इच्छा रखने वाले और असन्तोषी हमेशा दुःखी ही रहते हैं।
जिसकी इच्छायें सीमित हैं- उसके दुःख भी स्वतः ही सीमित अथवा कम हो जाते हैं।

सच्चाई यही है कि पूर्णरूप से आत्मिक सुख की प्राप्ति केवल समय के मार्गदर्शक महाराज जी के श्री चरणों से ही सम्भव है।
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दादू देव दयाल की, गुरू दिखाई बाट।
ताला कूँची लाइ करि, खोले सबै कपाट॥
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जय सच्चिदानन्द
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