खुद में रा़स्ता ढूढ़े!
एक बार स्वामी विवेकानन्द के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुःखी लग रहा था। वह व्यक्ति आते ही स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला कि महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुःखी हूँ! मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ – काफी लगन से भी काम करता हूँ; लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाया।
भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ।
स्वामी जी उस व्यक्ति की परेशानी को पल भर में ही समझ गए। उन दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था!
उन्होंने उस व्यक्ति से कहा– तुम कुछ दूर जरा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।
आदमी ने बड़े आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखा और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा। काफी देर तक अच्छी खासी सैर करा कर जब वो व्यक्ति वापस स्वामी जी के पास पहुँचा तो स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी चमक रहा था जबकि कुत्ता हाँफ रहा था और बहुत थका हुआ लग रहा था।
स्वामी जी ने व्यक्ति से कहा कि ये कुत्ता इतना ज्यादा कैसे थक गया जबकि तुम तो अभी भी साफ सुथरे और बिना थके दिख रहे हो?
तो उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तो सीधा साधा अपने रास्ते पर चल रहा था लेकिन ये कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था और लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता था। हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया है लेकिन फिर भी इस कुत्ते ने मेरे से कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है इसीलिए ये थक गया है।
स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा- यही तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब है, तुम्हारी मंजिल तुम्हारे आस पास ही है वो ज्यादा दूर नहीं है लेकिन तुम मंजिल पर जाने की बजाय; दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और अपनी मंजिल से दूर होते चले जाते हो!
जब आत्म ज्ञान प्राप्त होता है तो मतभेदों की धारणा से उत्पन्न होने वाले सभी भय दूर होने लगते हैं और व्यक्ति इस संसार के दुखों को पार करने में सक्षम हो जाता है।
यही एक ब्रह्मज्ञानी के अनुभव की स्थिति और सच्ची भक्ति का आधार है!
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