संकल्प पर ध्यान देना जरूरी
जैसे एक ही बिजली दो प्रकार से मारती है- एक चिपका कर मारती है तो दूसरी झटका देकर फेंक मारती है।
ऐसे ही एक ही मोह दो प्रकार से मारता है- मोह राग बन कर चिपका कर मारता है तो विमोह द्वेष बन कर फेंक मारता है।
हम कहते हैं कि मोह से कैसे बचें?
रेलगाड़ी की खिड़की से जो दृश्य जगत चलता हुआ दिखाई देता है, हम उस पर विशेष ध्यान न दें तो हमारी वृत्ति कहीं टिकती है? नहीं टिकती। क्यों?
क्योंकि दृश्य आया और गया, हममें किसी दृश्य का कोई संकल्प ही न उठा।*
पर हमने जैसे ही किसी दृश्य पर ध्यान दिया कि संकल्प उठा, वृत्ति उठी, मन दौड़ा और मोहजनित राग या द्वेष हुआ।
ऐसे ही संसार के किसी भी दृश्य पर अगर हम विशेष ध्यान न दें तो संकल्प उठेगा ही नहीं, मोह कैसे होगा?
यदि कोई कहे कि ध्यान बिना दिए काम कैसे चलेगा? ध्यान तो देना ही पड़ता है।
अगर कहीं ध्यान देना अवश्यम्भावी लगे तो उस वस्तु पर ध्यान दो पर उसे अपना मत समझो। जिसे तुम अपना न समझोगे, उससे भी मोह नहीं होगा।
जैसे किसी बैंक कर्मचारी को देखो। वह नोट गिनता है, बड़े ध्यान से एक-एक नोट गिनता है, रोज लाखों रुपए का लेन-देन करता है, पर न लेते हुए सुख मानता है, न देते हुए दुख पाता है। बस लेता है और देता है।
क्योंकि वह उस धन को अपना नहीं मानता। हम भी ऐसा ही अपने जीवन में करें तो सुख दुख कैसे हो? मोह कैसे हो? राग द्वेष कैसे हों?
नाशवान से आगे देखो। अविनाशी की ओर बढ़ो। तब नाशवान से मोह नहीं होगा। इसलिय मन को जोडते वक्त ध्यान जरूर दें।
एक गुरुभक्त अपने सद्गुरु से जब ज्ञान की याचना करता है तो वह भी संकल्प लेता है कि वह अनवरत अपने सदगुरु से जुडा रहेगा! ज्ञान का अभ्यास करेगा! पर ज्यों ही उस संकल्प को भूलता है तो माया के DC करन्ट के झटके झेलने को मजबूर हो जाता है!*
इसलिय संकल्प से सिद्धि पाने का एक ही रास्ता है कि हम अपने त्रिकोण को – जो हम उस ज्ञान और गुरु महाराज जी से जुड़े रहने पर बनाते हैं, उसे बरकरार रखें! उसमें किसी चौथे व्यक्ति, वस्तु का प्रवेश न होने दें! तभी हर पल आनंदित रहा जा सकता है!
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