कर्मो का खेल – कर्म का लेन देन

कर्मो का खेल – कर्म का लेन देन

एक फौजी था। उसके मां नहीं, बाप नहीं, शादी नहीं, बच्चे नहीं, भाई नहीं, बहन नहीं। अकेला ही कमा कमा के फौज में जमा करता जा रहा था, तो थोड़े दिन में एक सेठ जी जो फौज में माल सप्लाई करते थे तो उनसे उनका परिचय हो गया और दोस्ती हो गई।

सेठ जी ने कहा, ”जो तुम्हारे पास पैसा है वो उतने के उतने ही पड़ा हैं उसे तुम मुझे दे दो मैं कारोबार में लगा दूं तो पैसे से पैसा बढ़ जायेगा।”

फौजी ने सेठ जी को पैसा दे दिया। सेठ जी ने कारोबार में लगा दिया। कारोबार उनका चमक गया, खूब कमाई होने लगी, कारोबार बढ़ गया।

थोड़े ही दिन में लड़ाई लग गई। लड़ाई में फौजी घोड़ी पर चढ़कर लड़ने गया। घोड़ी इतनी बदतमीज थी कि जितनी ज़ोर ज़ोर से लगाम खींचे उतनी ही तेज़ भागे। खींचते खींचते उसके गल्फर तक कट गये लेकिन वो दौड़कर दुश्मनों के गोल में जाकर खड़ी हो गई। दुश्मनों ने वार किया, फौजी भी मर गया और घोड़ी भी मर गई।

अब सेठ जी को मालूम हुआ कि फौजी मर गया तो सेठ जी बहुत खुश हुए कि उसका कोई वारिस तो है नहीं, अब ये पैसा किसको देना। अब मेरे पास पैसा भी हो गया, कारोबार भी चमक गया, लेने वाला भी नहीं रहा। यह सोचकर सेठजी बहुत खुश हुए।

कुछ ही दिन के बाद सेठजी के घर में लड़का पैदा हो गया! अब सेठजी और खुश कि भगवान की बड़ी दया है। खूब पैसा भी हो गया, कारोबार भी हो गया, लड़का भी हो गया,लेने वाला भी मर गया सेठ जी बहुत खुश।

वो लड़का होशियार था और पढ़ने में समझदार था। सेठजी ने उसे पढ़ाया लिखाया! जब वह पढ़ लिखकर बड़ा हो गया तो सोचा कि अब ये कारोबार सम्हाल लेगा, चलो अब इसकी शादी कर दें।

शादी करते ही घर में बहुरानी आ गई। अब उसने सोचा कि चलो, बच्चे की शादी हो गई अब कारोबार सम्हालेगा।

लेकिन कुछ दिन में बच्चे की तबियत खराब हो गई। अब सेठ जी डाक्टर के पास, हकीम के पास, वैद्य के पास दौड़ रहे हैं। वैद्य जी जो दे रहे हैं, दवा खिला रहे हैं, और दवा असर नहीं कर रही, बीमारी बढ़ती ही जा रही। पैसा बरबाद हो रहा है,और बीमारी बढ़ती ही जा रही है, रोग कट नहीं रहा, पैसा खूब लग रहा है। अब अन्त में डाक्टर ने कह दिया कि ला-इलाज मर्ज़ हो गया, इसको अब असाध्य रोग हो गया है! ये बच्चा दो दिन में मर जायेगा।

डाक्टरों के जवाब देने पर सेठ जी निराश होकर बच्चे को लेकर रोते हुए आ रहे थे तो रास्ते में एक आदमी मिला। उसने पूछा कि सेठजी क्या हुआ बहुत दुखी लग रहे हो?

सेठ जी ने कहा, “ये बच्चा जवान था, हमने सोचा बुढ़ापे में मदद करेगा। शादी होते ही अब ये बीमार हो गया।

हमने इसके लिये खूब पैसा लगा दिया! जिस डाक्टर ने जितना मांगा उतना दिया लेकिन आज डाक्टरों ने जवाब दे दिया और कहा, ”अब ये बचेगा नहीं। असाध्य रोग हो गया, लाइलाज मर्ज़ है। अब घर ले जाओ दो दिन भी काटना मुश्किल लगता है।“

आदमी ने कहा, ”अरे सेठ जी! तुम क्यों दिल छोड़ रहे हो। मेरे पड़ोस में वैद्य जी दवा देते हैं। दो आने की पुड़िया खाकर मुर्दा भी उठकर खड़ा हो जाता है। जल्दी से तुम वैद्य जी की दवा ले आओ।”

सेठ जी दौड़कर गये! दो आने की पुड़िया ले आये और पैसा दे दिया। पुड़िया ले आये बच्चे को खिलाई! बच्चा पुड़िया खाते ही मर गया।

अब सेठजी रो रहे हैं! सेठानी भी रो रही और घर में बहुरानी और पूरा गांव भी रो रहा है। गांव में शोर मच गया कि बहुरानी सेठ की कमर जवानी में टूट गई! सब लोग रो रहे हैं। तब वहां एक महात्मा जी आ गये।

उन्होनें कहा कि सेठ जी क्यों रो रहे हैं?
लोग बोले, इस सेठ का एक ही जवान लड़का था वो मर गया इसलिए सब लोग रो रहे हैं। सब दुखी हो रहे हैं।

महात्मा फिर सेठ से बोले, ”सेठजी ! क्यों रो रहे हैं?”
सेठ बोले, ”महाराज ! जिसका जवान बेटा मर जाये वो रोयेगा नहीं तो क्या करेगा?”

महात्मा जी गंभीर होकर बोले कि *आपको याद है जब एक फोजी मरा था और उस दिन बहुत खुश थे कि चलो मर गया – पैसा भी वापस नहीं देना पड़ेगा! माल बहुत हो गया! कारोबार खूब चमक गया!

महात्मा जी ने आगे बतलाया कि – सेठजी! वहीं फौजी पैसा लेने के लिये बेटा बन कर आ गया। पढ़ने में, लिखने में, खाने में, पहनने में और शौक में, श्रृंगार में जितना लगाना था लगाया। शादी ब्याह में सब लग गया। और ब्याज दर ब्याज लगाकर डाक्टरों को दिलवा दिया। अब जब दो आने पैसे बच गये, वो भी वैद्य जी को दिलवा दिये और पुड़िया खाकर चल दिया। यही सोचकर कि अब कर्मो का लेना देना पूरा हुआ।

सेठजी ने कहा, ‘हमारे साथ तो कर्मो का लेन देन था। चलो हमारे साथ तो जो हुआ सो हुआ। लेकिन वो जवान बहुरानी घर में रो रही है, जवानी में उसको धोखा देकर, विधवा बनाकर चला गया! उसका क्या जुर्म था कि उसके साथ ऐसा गुनाह किया।’

महात्मा बोले, ’यह वही घोड़ी है। जिसने जवानी में उसको धोखा दिया तो इसने भी जवानी में उसको धोखा दे दिया।’

इसलिय हमें याद रखना चाहिय कि –
बेटा बन कर, बेटी बनकर, दामाद बनकर और बहू बनकर वही आते हैं – जिनका हमारे साथ कर्मों का लेना देना होता है। लेना देना नहीं होगा तो नहीं आयेगा। जिसके सन्तान लायक होगी तो समझो कि उसने अच्छे कर्म किये होंगे! कर्म हमेशा अपने कर्ता को खोजते हैं!
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