मनुष्य जीवन महान है
चौरासी लाख योनियों में मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है- जिसका व्यक्तित्व निर्माण प्रकृति से ज्यादा उसकी स्वयंँ की प्रवृत्ति पर निर्भर होता है।
मनुष्य अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जैसा सोचता है, वैसा बन जाता है।
मनुष्य और अन्य चौरासी लाख योनियों में प्राणियों के बीच का जो प्रमुख भेद है वह ये कि मनुष्य के सिवा कोई और प्राणी श्रेष्ठ विचारों द्वारा एक श्रेष्ठ जीवन का निर्माण नहीं कर पाता है।
वो अच्छा सोचकर, अच्छे विचारों के आश्रय से अपने जीवन को अच्छा नहीं बना सकता है।
प्रकृति ने उसका निर्माण जैसा कर दिया, कर दिया। अब उसमें सुधरने की कोई सम्भावना बाकी नहीं रह जाती है।
मगर एक मनुष्य में जीवन के अन्तिम क्षणों तक जीवन परिवर्तन के द्वार सदा खुले रहते हैं। वह अपने जीवन को अपने हिसाब से अच्छा या बुरा बना सकने में समर्थ होता है।
पशु के जीवन में पशु से पशुपतिनाथ बनने की सम्भावना नहीं होती मगर एक मनुष्य के जीवन में नर से नारायण बनने की प्रबल सम्भावना होती है।
मनुष्य जैसा खाता है, जैसा देखता है, जैसा सुनता है, जैसा बोलता है और जैसा सोचता है, फिर उसी के अनुरूप वो अपने व्यक्तित्व का निर्माण भी कर लेता है।
अगर उस परम प्रभु ने कृपा करके आपको मनुष्य बनाया है तो फिर क्यों न समय के सदगुरुदेव के श्री चरणों का सहारा लेकर, अध्यात्म पथ पर चल कर, आत्म-ज्ञान को प्राप्त करके श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करते हुए अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाया जाए।
कहा है कि –
बड़े भाग मानुष तन पावा!
सुर दुर्लभ सद्ग्रथन गावा!!
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा!
पाय न जेहिं परलोक सुधारा!!