करले भजन की कमाई, क्या है भरोसा इस देह का।।
स्वांस पवन का अंदर बाहर रहता आना-जाना
बाहर का बाहर रह जावे, अंदर नहीं ठिकाना
काया किस काम आई, क्या है भरोसा इस देह का।।
स्वारथ वाले हैं जग वाले, जो शमसान जलावे।
हंस बिचारा जाय अकेला, कोई साथ नहीं जावे
प्रीति किस ने निभाई, क्या है भरोसा इस देह का।
अपनी करनी से पावेगा, योनि लख चौरासी।
हर योनि में भोग मिलेंगें, मिले नहीं अविनाशी
नाहक उमर गवाई, क्या है भरोसा इस देह का।।
करी कमाई खो दई सारी, अपना आपा भूल गया
मोह माया की बांधा गाँठडी,धन दौलत पै फूल गया
तेरा कोन्या भलाई, क्या है भरोसा इस देह का।।
सतगुरु का ले नाम, ध्यान सुमिरण हर स्वास किये जा
मानुष देह मिली है तुझको, इसको सफल किये जा।।
तेरी इसी में भलाई, क्या है भरोसा इस देह का।।
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