जीवनदाता और मृत्यु
जंगल में एक पेड़ पर दो बाज प्रेमपूर्वक रहते थे। दोनों शिकार की तलाश में निकलते और जो भी हाथ लगता शाम को उसे मिल बांटकर खाते। लंबे काल-खंड से यही क्रम चल रहा था।
एक दिन दोनों शिकार कर के लौटे तो *एक की चोंच में चूहा और दुसरे की चोंच में सांप था।*
दोनों ही शिकार तब तक जीवित थे। पेड़ पर बैठकर बाजों ने जब उनकी पकड़ ढीली की *सांप ने चूहे को देखा* और *चूहे ने सांप को।* सांप चूहे का स्वादिष्ट भोजन पाने के लिए जीभ लपलपाने लगा और चूहा सांप के प्रयत्नों को देख कर अपने शिकारी बाज के पंखों में अपने बचने का उपक्रम करने लगा।
उन दोनों के क्रियाकलाप को देखकर एक बाज गम्भीर हो गया और विचारों में खो गया। दूसरे बाज ने पहले वाले बाज से पूछा- *दोस्त, दार्शनिकों की तरह किस चिंतन में खो गए?* पहले बाज ने अपने पकड़े हुए सांप की और संकेत करते हुए कहा, *देखते नहीं यह कैसा मूर्ख प्राणी है? जीभ की लिप्सा के आगे इसे अपनी मौत भी एक प्रकार से विस्मरण हो रही है।*
दूसरे बाज ने अपनी चोंच में फंसे चूहे की आलोचना करते हुए कहा- *और इस नासमझ को भी देखो – भय इसे प्रत्यक्ष मौत से भी डरावना
लग रहा है।*
पेड़ की नीचे एक सन्त सुस्ता रहे थे। उन्होंने दोनों बाजों की बातें सुनी और एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोले – *हम मानव भी तो सांप और चूहे की तरह स्वाद व भय को बड़ा समझते हैं! मृत्यु को तो हम लोगों ने भी विस्मृत कर रखा है, जबकि मृत्यु तो अटल सत्य है।*
अतः मानव को अपने स्वयं के भले के लिए दो चीजों को कभी विस्मृत नहीं करना है।
पहले भगवान, *जीवन दाता* – जिन्होंने कृपा करके मानव तन उपहार स्वरूप दिया और दूसरा *स्वयं की मौत।*
इस प्रकार जीवन-मृत्यु के बीच के अन्तराल में *अपने आप को जानना* है और *स्वयं का आनन्द लेना है!*
इसी में *जीवन की सार्थकता है!*
*आपका आज का दिन आनन्दमय हो!*
*ओम शांति*
💐💐सु प्र भा त💐💐
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