माँ लक्ष्मी ने आगे कहा – जिस परिवार में गुरुजनों का सत्कार होता है; दुसरों के साथ जहाँ सभ्यता पूर्वक बात की जाती है और मुख से बोलकर कोई कलह नहीं करता मैं वहीं पर वास करती हूँ!

एक सेठ को स्वप्न में माँ लक्ष्मी ने दर्शन दिये और कहा – सेठ! अब तेरे पुण्य समाप्त हो गये हैं, इसलिए तेरे घर से कुछ ही दिनों में मैं चली जाऊँगी. तुझे मुझसे जो माँगना है, वह माँग ले!🌻

सेठ ने कहा- कल सुबह अपने कुटुम्ब के लोगों से विचार-विमर्श करके जो माँगना होगा – माँग लूँगा!🌷

सेठ ने सुबह स्वप्न की बात अपने परिवार के लोगों को बताई! परिवार के लोगों में से किसी ने वाहन माँगने को कहा तो किसी ने सोना-चाँदी तो किसी ने हीरे-मोती माँगने को कहा!

अन्त में सेठ की सबसे छोटी पुत्र-वधु बोली – पिता जी! जब लक्ष्मी को जाना ही है तो ये सब वस्तुएँ मिलने पर कहाँ रह पायेंगी?
आप इन्हें माँगेगे तो भी ये मिलेंगी नहीं! आप तो बस यही माँगिये कि परिवार में प्रेम बना रहे क्योंकि परिवार में परस्पर प्रेम बना रहेगा तो विपत्ति के दिन भी सरलता से कट जायेंगे!

सेठ को छोटी पुत्र-वधू की बात पसन्द आई! दूसरी रात्रि में स्वप्न में उन्हें फिर से माँ लक्ष्मी के दर्शन हुए!

सेठ ने प्रार्थना की – देवी! आप जाना चाहती हैं तो प्रसन्नता से जायें; किन्तु यह वरदान दें कि हमारे कुटुम्ब में परस्पर प्रेम बना रहे!

माँ लक्ष्मी बोलीं – सेठ! ऐसा वरदान माँग कर तुमने मुझे बाँध ही लिया है! जिस कुटुम्ब (परिवार) के सदस्यों में परस्पर प्रेम है, वहाँ से मैं कैसे जा सकती हूँ?

माँ लक्ष्मी ने आगे कहा – जिस परिवार में गुरुजनों का सत्कार होता है; दुसरों के साथ जहाँ सभ्यता पूर्वक बात की जाती है और मुख से बोलकर कोई कलह नहीं करता मैं वहीं पर वास करती हूँ!
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