नैतिकता का पाठ

जब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में फंस गया तो वह रथ से उतरकर उसे ठीक करने लगे! वह उस समय बिना हथियार के थे!

भगवान कृष्ण ने तुरंत अर्जुन को बाण से कर्ण को मारने का आदेश दिया।
अर्जुन ने भगवान के आदेश को मान कर कर्ण को निशाना बनाया और एक के बाद एक बाण चलाए, जो कर्ण को बुरी तरह चुभता हुआ निकल गया और कर्ण जमीन पर गिर पड़े।

कर्ण, जो अपनी मृत्यु से पहले जमीन पर गिर गए थे तो उन्होंने भगवान कृष्ण से पूछा, “क्या यह तुम हो, भगवान? क्या आप दयालु हैं? क्या यह आपका न्यायसंगत निर्णय है!
एक बिना हथियार के व्यक्ति को मारने का आदेश?

भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और उत्तर दिया, कर्ण जरा याद करो- जब अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी चक्रव्यूह में निहत्था हो गया था। तब आप सभी ने मिलकर उसे बेरहमी से मार डाला था। उस समय आप भी उसमें थे तो तब कर्ण तुम्हारा ज्ञान कहाँ था?

“”यह तो कर्मों का प्रतिफल है, यही मेरा न्याय है।”

सचमुच, कर्म अपने कर्ता का पीछा अवश्य करता है!
कहा भी है कि –
कर्म प्रधान विश्व रची राखा!
जो जस करही, सो तस फल चाखा!!
इसलिए, हमको सोच समझकर काम करना चाहिए!
अगर आज हम किसी को चोट पहुँचाते हैं, किसी का का तिरस्कार करते हैं, किसी की कमजोरी का फायदा उठाते हैं या किसी पर उपकार करते हैं, किसी के दुखों के निवारण का कारण बनते हैं तो भविष्य में वही अच्छा और बुरा कर्म हमारी प्रतीक्षा कर रहा होगा और शायद वह स्वयं हमको प्रतिफल देगा!
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