*🙏🏻रास्ते पर पडा अनगढ़ पत्थर🙏🏻*
एक मूर्तिकार एक रास्ते से गुजरा और उसने संगमरमर के पत्थर की दुकान के पास एक बड़ा अनगढ़ संगमरमर का पत्थर राह के किनारे पड़ा देखा।
उसने दुकानदार से पूछा – *और सब पत्थर सम्भाल के भीतर रखे गए हैं। ये पत्थर बाहर क्यों डाला है ?*
उसने कहा, *ये पत्थर बेकार है। इसे कोई मूर्तिकार खरीदने को राजी नहीं है। लेकिन आपकी इसमें उत्सुकता है क्या ?*
मूर्तिकार ने कहा, * हाँ, इसमें मेरी उत्सुकता है।*
दूकानदार ने कहा, *आप इसको मुफ्त ले जाएँ। ये निकले यहाँ से तो जगह खाली हो बस इतना ही काफी है। ये आज दस वर्ष से यहाँ पड़ा है। कोई खरीददार नहीं मिलता। आप ले जाओ कुछ पैसे देने की जरूरत नहीं है। अगर आप कहो तो आपके घर तक पहुँचवाने का काम भी मैं कर देता हूँ।*
दो वर्ष बाद मूर्तिकार ने उस पत्थर के दुकानदार को अपने घर आमंत्रित किया कि *मैंने एक मूर्ति बनाई है। तुम्हें दिखाना चाहूँगा। वो तो उस पत्थर की बात भूल ही गया था। मूर्ति देखके तो दंग रह गया ऐसी मूर्ति शायद कभी बनाई नहीं गई थी।*
उस मूर्तिकार ने भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप तराशा। मईया यशोदा श्री कृष्ण को गोद में खिला रही हैं। इतनी जीवंत कि उसे भरोसा नहीं आया।*
दुकानदार ने कहा, *ये पत्थर तुम कहाँ से लाए? इतना अद्भुत पत्थर तुम्हें कहाँ मिला?*
मूर्तिकार हँसने लगा उसने कहा *ये वही पत्थर है। जो तुमने व्यर्थ समझकर दुकान के बाहर फेंक रखा था और मुझे मुफ्त में दिया था। इतना ही नहीं। मेरे घर तक पहुँचा दिया था।*
*“क्या यह ही पत्थर है?” उस दुकानदार को तो भरोसा ही नहीं आया। उसने कहा, *तुम मजाक करते हो। उसको तो कोई लेने को भी तैयार नहीं था। दो पैसा देने को भी कोई तैयार नहीं था। तुमने उस पत्थर को इतना महिमा रूप, इतना लावण्य दे दिया! तुम्हें पता कैसे चला कि ये पत्थर इतनी सुन्दर प्रतिमा बन सकता है?*
मूर्तिकार ने कहा, *आँखें चाहिए – पत्थरों के भीतर देखने वाली आँख चाहिए।*
अधिकतर लोगों के जीवन भी अनगढ़ रह जाते हैं। जीवन नीरस लगने लगता है! कारण इतना ही कि *तरशानेवाला न मिलने के कारण हमारा जीवन अनगढ़ पत्थर है!*
*प्रत्येक व्यक्ति परमात्मा को अपने भीतर लिए बैठा है। जब सदगुरु मिलते हैं तो वह सत्संग रुपी छेनी से अपने शिष्य को तरासते हैं! वे आत्मज्ञान देते हैं जिससे अन्दर स्थित परमात्मा का दीदार होता है और जीवन के मायने समझ में आने लगता है कि यह कितना कीमती है!*
अन्यथा कहा है कि –
*ज्ञान बिना नर सोवहिं ऐसे, लवण बिना बहु व्यंजन जैसे!!*
हम सभी गुरुभक्तों के लिय खुश खबरी है कि *महाराजी ने हमें वह अंदर जाने की युक्ति प्रदान की है! बस हमें उस ज्ञान का सतत अभ्यास करना है!*
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