अहंकार की निशानी

अहंकार की निशानी

दान, पुण्य, उदारता यह धर्म-कर्म के मार्ग में बनाए हुए कुछ ऐसे सिद्धांत हैं, जिनकी आड़ में अनेक लोगों को ठगा भी जाता है। इसका सही अर्थ न जानने के कारण कई लोग अकारण अहंकारी भी हो गए। जबकि लोगों को इसका सही अर्थ समझना चाहिए। इस संदर्भ में एक कहानी है-

एक धनी व्यक्ति थे। वे अपने यहां आने वाले किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं लौटाते थे। उन्हें अपनी इस उदारता पर गर्व भी था। वे समझते थे कि उनके समान दूसरा कोई उदार नहीं है।

एक बार वे घूमते हुए खजूर के बाग में पहुंचे। उस समय बाग का चौकीदार भोजन करने की तैयारी में था। तभी वहां कहीं से एक कुत्ता आ गया। चौकीदार ने एक रोटी कुत्ते को दे दी। कुत्ते ने रोटी खा ली और चौकीदार के आगे फिर पूंछ हिलाने लगा। चौकीदार ने उसे दूसरी रोटी भी दे दी। धनवान सज्जन यह सब देख रहे थे। वे चौकीदार के पास आकर बोले, “तुम्हारे लिए कितनी रोटियां आती हैं।” चौकीदार ने कहा, “दो रोटी।”

“तो फिर तुमने दोनों रोटियां कुत्ते को क्यों दे दी ?”

चौकीदार ने जवाब दिया, “कुत्ता पहले कभी नहीं आया था। यह ठीक उस समय आया, जब मेरे लिए रोटियां आईं। मुझे ऐसा लगा कि ये रोटियां आज मेरे लिए नहीं, बल्कि इसके लिए आई है। इसलिए जिसकी वस्तु मैंने उसे दे दी।” उसकी बात सुनकर धनी व्यक्ति का सिर झुक गया। उसका अभिमान तत्काल नष्ट हो गया।

दरअसल कभी-कभी हम स्वयं को ही केंद्र मानने लग जाते हैं और यहाँ से अहंकार का जन्म होता है।
जब तक हम अपने केंद्र से बाहर झांककर नहीं देखें, तब तक हमें अहसास नहीं होता है कि हम कहां पर हैं!




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