🌿काल का वकील मन एक शातिर ठग🌿
हमारे भीतर ही शांति है और हमारे भीतर ही अशांति है। हमारे भीतर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का भीड़ भरा ऐसा संसार भी है जिसका राजा काल है और अहंकारी मन उसका वकील है। जब भी हम ध्यान में बैठते हैं तो यह काल का वकील मन हमें बहुत सारे प्रलोभन दिखाकर इसलिए इस भीड़ वाले बाजार में ले जाता है ताकि हम साक्षी भाव से अपने स्वांसों पर ध्यान केन्द्रित न कर सकें और काल की सत्ता में कोई विघ्न न आए। अहंकारी मन तोड़ने का काम करता है। इसलिए इसे काल का शातिर वकील कहते हैं। अभ्यास के समय इस काल के शातिर वकील की फिक्र ही छोड़ दो। तुम धीरे-धीरे तटस्थ और उदासीन हो जाओ। इस अहंकारी वकील को जो करना है, करने दो। उसकी जैसी मौज। अगर उसने ठगना ही तय किया है तो वो अपनी योजना बनाता रहे।
अभ्यास के समय तुम मन की लच्छेदार बातों में तनिक-सी भी दिलचस्पी मत लो वरना वो तुम्हें भी बहका कर अटका देगा। क्योंकि हमें जिससे लड़ना होता है तो उसके पास ही रहना होता है। इस अहंकारी वकील की न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। इससे दोस्ती करें तो फंस जाते हैं और दुश्मनी करें तो फंस जाते हैं। इसलिए इसे पता ही नहीं चलना चाहिए कि दोस्त हैं या दुश्मन। सिर्फ इस ठगने वाले शातिर वकील के तर्क वितर्क में तनिक सी भी दिलचस्पी नहीं लेना है। इस प्रकार के साक्षी भाव के अभ्यास से हम धीरे-धीरे मन के पार हो जाते हैं। ऐसा अभ्यास मन को स्वांसों की मधुर धुन में लीन कर देता है और हृदय के उस स्थान पर ले जाता है जहां काल की पहुंच नहीं होती और न ही इस काल के शातिर वकील मन की अदालत लगती है। वह स्थान समय के पार होता है जहां अविनाशी विराजमान है। तभी शांति का अनुभव हो जाता है और मनुष्य जीवन सफल हो जाता है।
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