द्रौपदी के स्वयंवर में जाते वक्त श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि

द्रौपदी के स्वयंवर में जाते वक्त श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि –
*हे पार्थ !*
*तराजू पर पैर संभलकर रखना!*
*संतुलन बराबर रखना!*
*लक्ष्य मछली की आंख पर ही केंद्रित हो उसका खास खयाल रखना!*

तो अर्जुन ने कहा,
*”हे प्रभु “, सब कुछ अगर मुझे ही करना है, तो फिर आप क्या करोगे?*

वासुदेव हंसते हुए बोले,
*हे पार्थ ! जो आप से नहीं होगा वह में करुंगा !*

अर्जुन ने कहा,
*प्रभु ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर सकता?*

वासुदेव फिर हंसे और बोले, *जिस अस्थिर, विचलित, हिलते हुए पानी में तुम मछली का निशाना साधोगे- उस अस्थिर “पानी” को स्थिर तो “मैं” ही रखूंगा !!*

कहने का तात्पर्य यह है कि*

*आप चाहे*
कितने ही निपुण क्यूँ ना हों!
कितने ही बुद्धिवान क्यूँ ना हों,
कितने ही महान एवं विवेकपूर्ण क्यूँ ना हों!

*लेकिन आप*
स्वयं हरेक परिस्थिति के ऊपर पूर्ण नियंत्रण नहीँ रख सकते!आप सिर्फ अपना प्रयास कर सकते हो!

क्योंकि
*साधारण पुरुषों की एक सीमा है!*

और
जो उस सीमा से आगे की बागडोर संभालता है
*उन्हीं को महापुरूष कहते हैं!*




Leave a Reply