एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था | एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ |
उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा :
*स्वामी, एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं | कोई उत्तर नहीं मिलता |
क्या आप मुझे उत्तर देंगे?*
उस संन्यासी ने उस राजा से कहा : नहीं, आज तुम खाली नहीं लौटोगे| निश्चित दूंगा| पूछो|
उस राजा ने कहा : मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं | ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना| मैं सीधा मिलना चाहता हूं|
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उस संन्यासी ने कहा : अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर?
राजा ने कहा: माफ़ करिए , शायद आप समझे नहीं| मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं, आप यह तो नहीं समझे कि किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की बात कर रहा हूं ; जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो?
उस संन्यासी ने कहा : महानुभाव, भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है| मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं| अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं, सीधा जवाब दें|
तुम तो बीस साल से भगवान से मिलने को उत्सुक हो और आज वक्त आ गया तो मिल लो|
राजा ने हिम्मत की और उसने कहा : अच्छा मैं अभी मिलना चाहता हूं मिला दीजिए|
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संन्यासी ने कहा : इस छोटे से कागज पर अपना नाम पता लिख दो ताकि मैं भगवान के पास पहुंचा दूं कि आप कौन हैं|
राजा ने अपना नाम, अपना महल का नाम, अपना परिचय, अपनी उपाधियां लिखकर उन्हें दी!
तब वह संन्यासी बोला कि महाशय, ये सब बाते मुझे झूठ और असत्य मालूम होती हैं जो आपने कागज पर लिखीं|
राजा हतप्रभ था कि इस सन्यासी को मेरे परिचय पर संदेह क्यों हो रहा होगा?
उस संन्यासी ने कहा : मित्र, अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे? तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सत्ता, तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा?
उस राजा ने कहा : नहीं, नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा? नाम, नाम है, मैं, मैं हूं!
तो संन्यासी ने कहा : एक बात तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं| आज तुम राजा हो, कल गांव के भिखारी हो जाओगे तो के बदल जाओगे?
उस राजा ने कहा : नहीं, अगर मेरा राज्य चला जाएगा, मैं भिखारी भी हो जाऊंगा, लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा? मैं तो जो हूं हूं| राजा होकर जो हूं, भिखारी होकर भी वही रहूँगा! अगर महल, राज्य और धन- संपति नहीं भी होगी तो भी मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं!
फिर संन्यासी ने कहा : तो तय हो गई दूसरी बात कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं|
अब ये बताओ तुम्हारी उम्र कितनी है?
उसने कहा : चालीस वर्ष!
संन्यासी ने कहा: तो पचास वर्ष के होकर क्या तुम दूसरे हो जाओगे? जब तुम बीस वर्ष या जब बच्चे थे लो क्या तब दुसरे थे?
उस राजा ने कहा : नही! उम्र बदलती है, शरीर बदलता है लेकिन मैं कभी नहीं बदला! मैं तो जो बचपन में था, जो मेरे भीतर था, वह आज भी है!
उस संन्यासी ने कहा : अब तो उम्र भी तुम्हारा परिचय न रहा, शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा! अब अपना असली परिचय लिखकर दो कि असलियत में तुम कौन हो? अगर उसे लिख दोगे तो मैं उसे भगवान के पास पहुंचा दूंगा, अन्यथा गलत जानकारी देने की वजह से मैं भी झूठा बनूंगा तुम्हारे साथ! अभी तक तुम खुद बतला चुके कि अब तक का दिया परिचय तुम्हारा नहीं है|
राजा बोला : अब तो बड़ी कठिनाई हो गई| उसे तो मैं भी नहीं जानता! आखिर जो मैं हूं , उसे तो मैं नहीं जानता! अब तक मैं इन्हीं को अपना परिचय समझता था!
उस संन्यासी ने कहा : मेरे लिय भी यह धर्म संकट है कि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं, बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है, तो भगवान भी क्या कहेंगे कि किसको मिलाना चाहता है?
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तो जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो |
और मैं तुमसे वादा करता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो, उस दिन तुम्हें भगवान को खोजने की जर्रूरत भी नहीं पड़ेगी क्योंकि खुद को जानने में ही वह भी जान लिया जाता है – जो परमात्मा है यानी जिसने खुद को जान लिया उसके परमात्मा को पा लिया!
खुद के बोध के लिय सदगुरु की शरणागत होना होगा तभी साक्षात् परम ब्रह्म का दीदार हो पायेगा!
जिसने भी वह दीदार अपने अन्दर ही जीते जी किया उसने यही अनुभव किया कि –
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अर्थात्, गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु ही शंकर हैं। गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं, ऐसे सद्गुरु को मेरा प्रणाम!
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