*गधे की मजार*
एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्न हो गयाऔर उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्न था गधे के साथ। अब उसे पेदल यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था! अब गधे के कारण आराम हैऔर गधा भी बड़ा स्वामीभक्त था।
कुछ दिनों बाद गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी और कब्र के पास बैठकर रो ही रहा था कि उसके पास से ही एक राहगीर गुजरा। उस राहगीर ने सोचा कि *जरूर किसी महान आत्मा की मृत्यु हो गयी है।*
तो वह व्यक्ति भी झुका कब्र के पास। इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे! उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये। बंजारे को हंसी भी आई आयी। लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी उसे ठीक नहीं लगा और उसे यह भी समझ में आ रहा था कि *यह बड़ा उपयोगी व्यवसाय है।*
अब वह हर रोज उसी कब्र के पास बैठकर रोता और यही उसका धंधा हो गया। लोग आते, गांव-गांव खबर फैल गयी कि *किसी महान आत्मा की मृत्यु हो गयी और इस प्रकार गधे की कब्र किसी पहूंचे हुए फकीर की समाधि बन गयी।*
ऐसे कई वर्ष बीते – *वह बंजारा बहुत धनी हो गया।*
संयोगवश एक दिन जिस सूफी साधु ने उसे यह गधा भेंट किया था। वह भी यात्रा पर था और उस गांव के करीब से गुजरा। उसे भी लोगों ने कहा, *“एक महान आत्मा की कब्र है यहां, दर्शन किये बिना मत चले जाना।”*
वह गया! देखा उसने इस बंजारे को बैठा! तो उसने कहा, *यह किसकी कब्र है यहा और तू यहां बैठा क्यों रो रहा है?”*
उस बंजारे ने कहा, *“अब आप से क्या छिपाना! जो गधा आप ने दिया था। उसी की कब्र है। जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया और मर कर और ज्यादा साथ दे रहा है।”*
सुनते ही फकीर खिल खिलाकर हंसाने लगा।
उस बंजारे ने पूछा – *“आप हंसे क्यों ?”*
फकीर ने कहा – *“तुम्हें पता है। जिस गांव में मैं रहता हूं वहां भी एक पहूंचे हएं महात्मा की कब्र है। उसी से तो मेरा भी काम चलता है।”*
बंजारे ने पूछा – *“वह किस महात्मा की कब्र है?”*
फकीर ने जवाब दिया- *“वह इसी गधे की मां की!*
जो लोग यह कहते हैं कि *केवल आस्था से ही ईश्वर की भक्ति संभव हैं उन्हें यह नहीं मालूम की बिना आत्मज्ञान के आस्था अन्धविश्वास कहलाती है और आत्मज्ञान समय के सदगुरु के द्वारा ही मिल सकता है!*