सच्ची सद्गति कैसे….?

💫सच्ची सद्गति कैसे….?🌷

✍️ …..एक व्यापारी अपने ग्राहक को शहद दे रहा था। अचानक व्यापारी के हाथ से छूटकर शहद का बर्तन गिर पड़ा। बहुत-सा शहद भूमि पर ढुलक गया। जितना शहद व्यापारी उठा सकता था, उतना उसने ऊपर-ऊपर से उठा लिया; लेकिन कुछ शहद भूमि में गिरा रह गया।

बहुत-सी मखियाँ शहद की मिठास के लोभ से आकर उस शहद पर बैठ गयीं। मीठा-मीठा शहद उन्हें बहुत अच्छा लगा। जल्दी-जल्दी वे उसे चाटने लगीं। जब तक उनका पेट भर नही गया, वे शहद चाटने में लगी रहीं।

जब मक्खियों का पेट भर गया, उन्होंने उड़ना चाहा। लेकिन उनके पंख शहद से चिपक गये थे। उड़ने के लिये वे जितना छटपटाती थीं, उतने ही उनके पंख चिपकते जाते थे। उनके सारे शरीर में शहद लगता जाता था।

बहुत-सी मक्खियाँ शहद में लोट-पोट होकर मर गयीं। बहुत-सी पंख चिपकने से छटपटा रहीं थीं। लेकिन दूसरी नयी-नयी मक्खियाँ शहद के लोभ से वहाँ आती-जाती थीं| मरी और छतपटाती मक्खियों कू देखकर भी वे शहद खाने का लोभ छोड़ नहीं पाती थीं।

मक्खियों की दुर्गति और मुर्खता देखकर मन में एक चिंतन उठता है कि- ‘जो लोग लोभ में पड़ जाते हैं, वे इन मक्खियों के समान ही मूर्ख होते हैं। मुख के स्वाद का थोड़ी देर का सुख उठाने के लोभ से वे अपना स्वास्थ्य नष्ट कर देते हैं, रोगी बनकर छटपटाते हैं और शीघ्र मृत्यु के ग्रास बनते हैं।’

वास्तव में मक्खी में तो बुद्धि अथवा विवेक नहीं परंतु मनुष्य एक अत्यंत विवेकशील प्राणी होते हुए भी अपनी इंद्रियों का गुलाम बना बैठा है। सत्य ज्ञान की अनुपस्थिति होने के कारण वह पांचों विकारों की जंजीरों से बंधा हुआ हर पल तड़पता है, छटपटाता है, और अंत में एक निरर्थक जीवन जीते हुए प्राण त्याग देता है। जबकि सच्ची सद्गति अथवा लिबरेशन तो विकारों को त्यागने में ही है !!

सदा याद रहे कि आप एक शांत और प्रेम स्वरूप परमआत्मा के ही अंशी हैं!

🍁🍁🍁💞 आपका जीवन आनन्दमय हो!💞🍁🍁🍁




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