मृत्यु का भय जीवन को बदल देता है
एक बार की बात है सन्त तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था! उनके समक्षआया और बोला, *”गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं? ना आप किसी पर क्रोध करते हैंऔर ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं?”
कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए।
सन्त बोले, ”मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ!”
मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?” ,शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।”
तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो!”, सन्त तुकाराम दुखी होते हुए बोले।
कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं सन्त तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था?
शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहांँ से चला गया। उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान-सुमिरणऔर पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया हो और उनसे माफ़ी मांँगता।
देखते-देखते सन्त की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये।
शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं।
वह उनके समक्ष पहुंँचा और बोला, ”गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला है,कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”
“मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र! गुरु जी ने प्यार से उसे कहते हुए उससे पूछा, अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?”,
शिष्य तत्परता से बोला कि नहीं-नहीं, महाराज, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे,मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था?मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी’!
सन्त तुकाराम मुस्कुराए और बोले, “बस यही तो मेरेअच्छे व्यवहार का रहस्य है।”
मैं जानता हूँ कि एक न एक दिन मुझे इस संसार से जाना है इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।
शिष्य समझ गया कि सन्त तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था।
अगर हम नियमित सेवा, सत्संग और साधना अभ्यास करते हैं तो हमको निन्दा, चुगली और तेरी-मेरी व्यर्थ की बातों में पढने की जरुरत ही नहीं है!
भजन-सुमिरण के सतत अभ्यास अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहिए। यही मनुष्य जीवन का सार है।
बाकी एक ना एक दिन जाना सबने है –
आये हैं सो जायेंगे, राजा रंक फकीर!
कोई सिंहासन चढ चला, कोई बंधे जंजीर!!
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