क्षमा करने वाला हमेशा सुख की नींद सोता है!
क्षमा हमेशा व्यक्ति को ऊँचा उठाती है। व्यक्ति बदला लेकर दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है, पर इस प्रयास में वो खुद बहुत नीचे उतर जाता है।
जो व्यक्ति अहंँकार बस सतसंग नहीं सुनते, तर्क-कुतर्कों में पड़कर, महाराज की सेवा नहीं करते, ऐसे व्यक्तियों का जीवन गुस्से से व्यर्थ चला जाता है।
उनकी जीवात्मा हमेशा कष्ट पाती है। चौरासी योनियों का दुख पाती है। इस जन्म में भी और चौरासी लाख योनियों में भी कष्ट पाते हैं।
एक बार एक धोबी नदी किनारे की शिला पर रोज की तरह कपडे धोने आया। उसी शिला पर कोई महात्मा जी ध्यानस्थ थे।
धोबी ने आवाज़ लगायी, उसने नहीं सुनी। धोबी को जल्दी थी, दूसरी आवाज़ लगायी,वो भी नहीं सुनी, तो फिर धोबी ने महात्मा जी को धक्का मार दिया।
ध्यानस्थ महात्मा जी की आँखें खुली, क्रोध की जवाला उठी!दोनों के बीच में खूब मार -पीट और हाथा पायी हुई।
लुटपिट कर दोनों अलग अलग दिशा में बैठ गये।
एक व्यक्ति दूर से ये सब बैठकर देख रहा था।
महात्मा जी के नजदीक आकर पूछा, महात्मा जी आपको ज्यादा चोट तो नहीं लगी, उसने बहुत मारा आपको।
महात्मा जी ने कहा, उस समय आप छुडाने क्यों नहीं आये?
व्यक्ति ने कहा, आप दोनों के बीच में, जब युद्ध हो रहा था, उस समय में यह निर्णय नहीं कर पाया कि धोबी कौन है और महात्मा कौन है?
प्रतिशोध और बदले की भावना महात्मा को भी धोबी के स्तर पर उतार लाती है।
इसीलिए कहा जाता है कि, बुरे के साथ बुरे मत बनो, नहीं तो महात्मा और दुष्ट की क्या पहचान।
दूसरी तरफ, क्षमा करके व्यक्ति अपने स्तर से काफी ऊँचा उठ जाता है।
इस प्रतिक्रिया में वो सामने वाले को भी ऊँचा उठने और बदलने की गुप्त प्रेरणा या मार्गदर्शन देता है।
“प्रतिशोध और गुस्से से हम कभी कभार खुद को नुक्सान पहुँचा बैठते हैं। जिससे हमें बाद में खुद बहुत पछतावा होता है!
इसलिए समझना होगा कि गुस्सा अपना ही नुक़सान करता है!
गुस्से में लिया गया फैसला अक्सर गलत ही साबित होता है, इसलिए हमें खुद पर काबू रखना बहुत जरुरी है।
हमेशा निरन्तर भगवान के अव्यक्त-नाम का सुमिरन करना चाहिए।
क्षमा करने से सामने वाले व्यक्ति के नजर में हमारी इज्जत, सम्मान और बढ़ जाती है।
यानी भजन-सुमिरण करने वाले के सिर पर हमेशा परमात्मा का हाथ रहता है।
गुस्से में हमेशा अक्सर वो काम हो जाता है जिससे हम दूसरों को और खुद को भी नुक्सान पहुँचाने के साथ साथ लोगों के दिलों में नफरत पैदा कर देते हैं।
गुरु दरबार की सेवा, ध्यान-सुमिरण से मन के अन्दर दया प्रेम पैदा होता है। गुस्सा शान्त हो रहता है।
आपको जब भी गुस्सा आये या किसी के ऊपर गुस्सा हो तो हमें चाहिए कि उस समय हम अपने दिमाग और मन को शान्त रखें (नियन्त्रण करना सीखें) नाम-सुमिरण या फिर हम वहांँ से कहीं दूसरी जगह पर चले जाएँ।
यह मन बड़ा चंँचल और स्वार्थी है, इसलिए हमेशा समय के महापुरुष के सानिध्य में रहें! नियमित सतसंग सुनें! अभ्यास करें! सेवा करें और अपने मानव जीवन को सार्थक करें!
यही जीवन का सार है।