एक छोटा बच्चा था! वह बहुत ही नेक और बुद्धिमान था।
एक दिन वो मंदिर में गया। मंदिर के अन्दर सभी भक्त भगवान के मंत्र बोल रहे थे। कुछ भक्त स्तुति गान भी कर रहे थे। कुछ भक्त संस्कृत के काफी कठिन श्लोक भी बोल रहे थे।
बच्चे ने कुछ देर यह सब देखा और उसके चहेरे पर उदासी छा गयी। क्योंकि उसे यह सब प्रार्थना और मंत्र बोलना आता नहीं था। कुछ देर वहाँ खड़ा रहा। उसने अपनी आँखे बन्द की और अपने दोनों हाथ जोड़े और बार-बार *”क-ख-ग-घ”* बोलने लगा।
मंदिर के पुजारी ने यह देखा उसने लड़के से पूछा कि *”बेटे तुम यह क्या कर रहे हो?*
बच्चे ने कहा, *”मैं भगवान की पूजा कर रहा हूं”।*
पुजारी ने कहा कि *”बेटे भगवान से इस तरह से प्रार्थना नहीं की जा सकती! तुम तो क-ख-ग-घ बोल रहे हो।”*
पंडित पुजारी की कोई गलती भी नहीं थी क्योंकि कभी कभी कुछ पंडितो की पूजा भी रटी रटाई होती है। भाव का तो मिश्रण होता ही नहीं!
लेकिन बच्चा मासूम था। उसके पास शब्द तो थे नहीं *सो भाव से क ख ग घ ही बोलने लगा।*
लड़के ने उत्तर दिया कि *”मुझे प्रार्थना, मंत्र, भजन नहीं आते!मुझे सिर्फ क-ख-ग-घ ही आती है।*
मुझे मेरे पिताजी ने घर में पढ़ाते वक्त यह बताया था कि *सारे शब्द इसी क-ख-ग-घ से बनते हैं!* इसलिये मेरे को इतना पता है कि *प्रार्थना, मंत्र, भजन यह सब क-ख-ग-घ से ही बनते हैं।*
मैं दस बार क-ख-ग-घ बोल गया हूँ और भगवान से प्रार्थना करी कि *हे भगवान मैं अभी छोटे से स्कूल में पड़ता हूँ मुझे अभी यही सिखाया है! यह सब शब्द में से अपने लिए खुद प्रार्थना, मंत्र, भजन बना लेना!*
बच्चे की बात सुनकर पुजारी जी चुप हो गए। उनको अपनी भूल का एहसास हो गया कि *भगवान की पूजा में शब्दों से ज्यादा भाव का महत्व होता है!*
प्रार्थना हदय को साफ और निर्मल करती है।
इसलिए *शब्दों से ज्यादा भाव का महत्व है। शब्द तो हवा में तैरते रह जाते हैं मगर भाव ह्रदयनाथ तक पहुंच जाता है।*
दुनिया में सैकड़ों भाषाएं हैं लेकिन *ह्रदय की भाषा का बोध समय से सद्गुरु से ही प्राप्त होता है!*
*🙏🏻🙏🏿🙏🏾 सुप्रभात*🙏🏽🙏🏼🙏
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